कल आज और कल

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Thursday, July 12, 2018

बाबू की पेंशन



दोस्तों, यह कहानी तब की है, जब हम लोग अपने पैतृक गाँव में निवास किया करते थे । मैं मेरा भाई, मम्मी, चाचा-चाची उनके बच्चे और मेरे बाबू । बाबू यानी कि, पिता जी के पिता जी उन्हें पूरा परिवार बाबू जी कह कर ही बुलाता था । मेरे बाबू पुलिस विभाग में दीवान हुआ करते थे। विभाग में सब लोग उन्हें दीवान साहब कह कर ही बुलाते थे। वो बहुत ही ईमानदार और साहसी दीवान थे।
एक बार मेरे बाबू और एक सिपाही हाथ में टॉर्च और कंधे पर बंदूक टांगकर, साईकल से ही गर्मियों की अंधेरी रात में गश्त के लिए निकल पड़े ।

और गश्त के दौरान ही उनका सामना कुछ डाकुओ से पड़ गया, सभी डाकुओं के मुँह कपड़े से बंधे हुए थे, और सब कंधे पर बंदूक टांगे, घोड़े पर सवार थे ।
वो सब उस इलाके के नामी गिरामी डाकू थे, और उस इलाके में उनका ही आतंक था, वो लोग लूट के ही, इरादे से कहीं जा रहे थे ।


जैसे ही डाकुओ ने बाबू और उनके साथी को गश्त लगाते देखा, उन लोगो ने तुरंत गोलीबारी प्रारम्भ कर दी । फिर क्या था बाबू और उनके साथी ने भी बड़ी बहादुरी के साथ उन सभी डाकुओं का सामना किया, और दोनों ने सात से आठ डाकुओ को वहीं मार गिराया ।

लेकिन इसी गोलीबारी के बीच एक गोली आकर मेरे बाबू के सीने में भी लग गयी और वो घायल हो गए ।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घायल होने के बावजूद भी उन्होंने लगातार डाकुओ का सामना किया, और अंत में बचे हुए डाकुओं को अपनी जान बचाकर वहाँ से भागना ही पड़ा ।

सारे डाकुओं के भाग जाने के बाद मेरे बाबू जी बेहोश हो गए और जब उनकी आँख खुली तो उन्होंने खुद को अस्तपाल में पाया और पास में उनकी धर्मपत्नी यानी हमारी अम्मा बैठी थी ।

इस हादसे से हमारी अम्मा सहम गयी थी, और उन्होंने बाबू से नौकरी छोड़ने को कह दिया । उसके बाद बाबू ने पेंशन ले ली और गाँव आ गए ।
धीरे धीरे सब सही हो गया था, और बाबू हमारे साथ गाँव में रहने लगे थे। हम बच्चे रोज़ रात को उनके पैर दबाते थे, और बदले में वो हमें रोज़ कोई न कोई कहानी सुनाते थे।

अब सभी लोगों को हर महीने बाबू की पेंशन का बेसब्री से इंतजार रहता था ।
और हम लोग भी पेंशन का बेसब्री से इंतजार करते थे। क्योंकि जब भी बाबू बैंक पेंशन लेने जाते थे, तो वहाँ से हम लोगो के लिए जलेबी और कंपट लेकर आते थे ।


उस जलेबी के लिए हम बच्चे लोग पूरे एक महीने बाबू की पेंशन के लिए इंतजार  करते थे । और जैसे ही बाबू पेंशन लेकर आते थे, हम बच्चे लोग बाबू आये जलेबी लाये, बाबू आये जलेबी लाये यही गाते चिल्लाते उनके पास दौड़कर आ जाते थे।



फिर वो जलेबी पूरे परिवार के सदस्यों में बाँटी जाती थी, और सबके हिस्से एक या दो छत्ता जलेबी आती थी। और दोस्तों तब वो जलेबी और कंपट दोनों ही बड़े स्वादिष्ट लगते थे।
आज मेरे बाबू इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी मेरे साथ हैं ।

दोस्तों मेरा मानना है, कि हम सबके जीवन मे ऐसी कोई न कोई छोटी - बड़ी, खट्टी - मीठी यादें अवश्य होती हैं, जिनको याद करके अक्सर हम अकेले ही हँसते - रोते हैं।

हमें अच्छी यादों को हमेशा याद रखना चाहिए, और बुरी यादों को भूल जाना चाहिए ।

अगर आपकी भी कोई अच्छी याद है तो हमें अवश्य बताएँ ।।






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