दोस्तों वृद्धाश्रम (old age home) का सन्धि विक्षेद है : वृद्ध + आश्रम यानी वृद्धों का आश्रम।
अर्थात एक ऐसा आश्रम या स्थान जहाँ पर वृद्धो को रखा जाता है, और उनकी देखभाल की जाती है।
अगर हम चाहे तो ये भी कह सकते है कि वृद्धाश्रम बूढ़े माँ बाप का हॉस्टल (hostel) होता है।
बचपन में माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर उनका भविष्य सँवारने की चाह में उन्हें हॉस्टल भेजते हैं, लेकिन वही बच्चे जब पढ़ लिख कर बड़े हो जाते हैं, तो वे अपने माँ बाप को उम्र के उस पड़ाव पर हॉस्टल यानी वृद्धाश्रम भेज देते हैं, जब उन्हें उन बच्चों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है।
वृद्धावस्था में माता पिता को अपने बच्चो के प्यार, साथ और सम्मान की अत्यधिक आवश्यकता होती है, किन्तु कुछ बच्चे इस बात को नहीं समझते हैं।
दोस्तों, जहाँ तक मुझे जानकारी है कि, पहले हमारे भारतवर्ष में वृद्धाश्रम नहीं हुआ करते थे। बल्कि यहाँ पर श्रवण कुमार और भगवान श्री राम और लक्ष्मण जैसे सुपुत्र जन्म लिया करते थे।
ये उन्ही श्रवण कुमार का देश है जिन्होंने अपने अंधे माँ बाप की चार धाम घूमने की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्हें अपने कंधे पर तराजूनुमा पालकी में बैठाकर पैदल ही चार धाम की यात्रा कराई थी।
ये उन्ही भगवान राम का देश है, जिन्होंने अपने पिता द्वारा दिये गए वचन को पूरा करने के लिए अपने जीवन के अनमोल चौदह वर्ष अपनी पत्नी माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ वन में बिता दिए थे।
ये वही देश हैं, जहाँ पर, "माता पिता के चरणों में ही स्वर्ग होता है", और "माता पिता साक्षात ईश्वर का स्वरूप हैं", जैसी कहावतें प्रचलित हैं।
प्रभु परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा को पूरा करने के लिए अपनी ही माता और भाइयों का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया था। और बाद में पिता से ही वरदान स्वरूप उन्होंने सभी को जीवित भी करा लिया था। इसलिए उनको सबसे बड़ा पितृभक्त भी कहा जाता हैं।
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किन्तु, आजकल परिवार में तो जैसे संस्कार और बड़े छोटे का आदर व सम्मान समाप्त ही हो गया है।
बच्चे जल्दी से माता पिता के मांगने पर एक ग्लास पानी भी नही देते हैं, क्योंकि आज के समय में बच्चे अपने माता पिता को बोझ समझते हैं।
वे समझते हैं कि उनके माता पिता उनकी तरक्की में रुकावट हैं, क्योंकि वो उन्हें हर काम के लिए टोकते हैं, और उनकी तरक्की से जलते हैं।
अधिकतर बच्चे अपने माता पिता को अपने दोस्तों और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से मिलाने में भी शरमाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके माता पिता उनकी बेइज्जती करा देंगे।
और तो और अगर पिता जी ने बच्चे को डांट भी दिया, तो बच्चा उल्टा पिता जी को ही डाँटने लगता है, जैसे कि वो खुद ही अपने पिता का पिता हो।
कुछ बच्चे तो ज़रा-ज़रा सी बात में ही, अपने माता पिता को घर से भगाने लगते हैं। जैसे कि घर उन्होंने खुद ही खरीदा और बनवाया हो।
और संस्कारों की सारी सीमाएं तो तब पार हो जाती हैं, जब अपने क्रोध में वो अपने माता पिता पर हाथ उठाने से भी पीछे नहीं हटते।
जब कोई मित्र उनसे पूछता है कि, क्या हुआ भाई ? मूड ऑफ क्यों लग रहा है, तुम्हारा तो बड़े गर्व से बताते है, कुछ नहीं यार, बाप से ज़रा हाय हाय हो गयी थी, और उसी में दो हाथ मैने भी उनको लगा दिए, और बिना खाना खाए ऐसे ही चला आया घर से ।
अपने मित्रो से इस प्रकार खुद ही अपनी प्रसंशा करते हुए न तो उन्हें लज्जा आती है, और न ही अपने किये का पछ्तावा होता है।
प्रत्येक माता पिता अपनी संतान को अपनी पूरी सामर्थ्य लगाकर पाल पोस कर बड़ा करते हैं। अपनी संतान के लिए बड़े बड़े सपने सजाते हैं। दुनिया भर की सारी खुशियां अपने बच्चों को देते हैं। धूम धाम से उनका शादी विवाह भी कराते हैं। किन्तु वही संतान विवाह के बाद अपने माँ बाप के सारे बलिदानों को भूल जाता है।
और जब उसे माता पिता की सेवा करनी चाहिए तब वह उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आता है। कुछ दिन पहले बने सम्बन्ध के लिए वो अपने वर्षो के सम्बन्ध को ठुकरा देता है।
मजबूर माँ बाप अपने बच्चे के सामने रोते बिलखते हैं, बेटा हमें भी साथ में रहने दो, हम यहीं किसी कोने में पड़े रहेंगे, और बचपन से हमने ही तो आपको पाल पोस कर बड़ा किया हैं।
तो बेटा कहता हैं : पाल पोश कर बड़ा किया है, तो कोई अहसान नहीं किया, सभी माँ बाप करते हैं, अपने बच्चो के लिए, और ये तो आपका कर्त्तव्य हैं।
ये बात सही हैं कि ये उनका कर्तव्य है और उन्होंने इसका भली भांति निर्वाह भी किया।
किन्तु आपने क्या किया ??
क्या आपने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया ??
क्या आपने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया ??
आप तो उन्हें छोड़ आये वृद्धाश्रम, और दोबारा देखने भी नहीं गए कि वो लोग कैसे हैं। ज़िंदा भी हैं या मर गए । कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, खाना खाते भी हैं या नहीं।
जो माँ बाप बचपन में आपके खाना न खाने पर आपके पीछे खाने की थाली लिए लिए लिए दौड़ते थे, कि बेटा, खाना खा लो, न पूरा खा पाओ तो थोड़ा ही खा लो, आज आप उनको ही भूल गए ।
दोस्तो ज़रा एक बार सोच कर देखिए, उन माँ बाप पर क्या गुज़रती होगी, जिसकी संतान उन्हें उन्ही के घर से निकालकर वृद्धाश्रम में छोड़ आये।
शायद हम यह भूल चुके हैं, की माँ बाप कभी अपनी संतान का बुरा नहीं सोचते, कभी अपने बच्चे की तरक्की से नहीं जलते, वो तो बस आपके लिए चिंतित रहते हैं, और आपको सुखी देखना चाहते हैं, अगर वो आप पर हाथ भी उठाते हैं, तो वो भी आपकी भलाई के लिए ।
याद रखिये जो व्यवहार हम अपने माता पिता के साथ करेंगे, वही व्यवहार हमारी संतान भी हमारे साथ करेगी ।
अगर आज हम अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज रहें हैं, तो कल हमारी संतान भी हमें वहीं भेज देगी। क्योंकि संतान अपने माता पिता से ही तो सर्वाधिक शिक्षित होती है।
इसलिए हमें अपनी संतान को अच्छे संस्कार देने चाहिए, और उन्हें बड़ो का आदर और सम्मान करना भी सीखाना चाहिए ।
वृद्धाश्रम बूढ़े माँ बाप के लिए न तो एक बेहतर स्थान है, और न ही हॉस्टल, बल्कि ये उनके लिए एक जेल हैं जहाँ वो बस सज़ा काटते हैं।
जिस दिन हम सभी बच्चे अपने माँ बाप का सम्मान करेंगे, उन्हें प्यार देंगे, अच्छे बुरे में उनकी सलाह लेंगे, उनकी सेवा करेंगे, उस दिन सारे वृद्धाश्रम अपने आप ही बंद हो जायेंगे ।
आइये आज हम सब मिलकर यह कसम खाए की माँ बाप को कभी दुःख नहीं देंगे और सदैव उनकी सेवा करेंगे।
मेरे विचारों पर अपनी सहमति और असहमति कमेंट के माध्यम से अवश्य प्रकट करे ।
।। धन्यवाद ।।
सच अपने घर से दूर एक जेल ही तो है वृद्धाश्रम
ReplyDeleteअपनी जिम्मेदारी से दूर भागते बच्चे, बड़ी दुखद स्थिति हैं
धन्यवाद कविता जी ।
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ReplyDeleteबहुत मार्मिक
बेहद दुखद स्थिति हैं
ReplyDeleteVichar apke ache hai But you are looking at one angle only..
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