दोस्तों रिश्ते हमारे भारतीय समाज का एक मजबूत आधार हैं। हमारे समाज में रिश्तों को कई नामो से जाना जाता है जिनमें भाई-बहन,पति-पत्नी,पिता-पुत्र,माता-पुत्र,सास-ससुर आदि प्रमुख हैं। इनमें से माता-पुत्र का रिश्ता एक ऐसा रिश्ता है जो इस समाज को एक अटूट बंधन में बाँधे हुए है। माता अपने पुत्र की भलाई के लिए निःस्वार्थ होकर समाज के विरुद्ध भी खड़ी हो जाती है। सही मायने में रिश्ते वही होते हैं जो निःस्वार्थ भाव से निभाये जाते हैं। समाज में जो लोग इन रिश्तो को निभाते हैं उन्हें रिश्तेदार कहा जाता है।
दोस्तो पहले रिश्तेदार निःस्वार्थ भाव से एक दूसरे के साथ रिश्तों को निभाया करते थे।
सुख में दुःख में किसी भी आपातकाल परिस्तिथि में रिश्तेदार आगे आकर एक दूसरे का सहयोग किया करते थे।
किसी के घर सुख में पहुँच सको या न पहुँच सको लेकिन दुःख में पहुँचना लोगो के लिए प्राथमिकता हुआ करती थी। पहले लोग अगर किसी भी कार्यक्रम के लिए रिश्तेदारों को निमंत्रण देते थे तो रिश्तेदार कार्यक्रम के प्रारंभ होने के एक हफ्ते पहले पहुँच जाते थे और कार्यक्रम के सम्पूर्ण होने के एक हफ्ते बाद तक रुके रहते थे और इस दौरान उस घर को अपना घर समझकर कार्यक्रम संबंधी सभी कार्य तल्लीनता से किया करते थे ताकि कार्यक्रम को अच्छे तरीके से सम्पन कराया जा सके। और अगर कोई रिश्तेदार किसी भी बीमारी या अन्य किसी कारणवश कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाता था तो बाकी लोग कार्यक्रम के सम्पन होने के बाद उसकी सलामती की खबर लेने उसके घर पहुँच जाते थे। किन्तु आज के इस बदलते परिवेश में रिश्तेदारों ने रिश्तो के मायने बदल दिए हैं। आज लोग केवल अपनी उपस्तिथि दर्ज कराने के लिए किसी कार्यक्रम में जाते हैं और वहाँ मौजूद स्वादिष्ट पकवानों का आनंद लेते है और जो पकवान या व्यवस्था उन्हें पसंद नही आती उसकी आलोचना करने में भी पीछे नही रहते। खुद तो आलोचना करते ही हैं और साथ में बाकी लोगो को भी विभिन्न प्रकार की कमियों से अवगत कराते हैं।
कुछ लोग तो इस कदर बड़बोले होते हैं कि वे अपनी ही प्रसंशा में लगे रहते हैं कि मेरे पास तो ये है, मेरे पास तो वो हैं मैने अपनी बेटी की शादी में ये किया था, मुझे मेरे बेटे की शादी में वो मिला था, चाहे उनसे कोई ये सब पूछे या न पूछे पर वो बिना किसी के पूछे ही सब बताते रहते हैं। और चार लोग वहीं खड़े होकर उनकी हाँ में हाँ मिलाते रहते हैं। और दोस्तो मज़ा तो तब आता है जब कोई एक उनकी हाँ में हाँ न मिलाकर बल्कि उनकी बात को मानने से इनकार कर देता है तो तुरंत उसके जाने पर बाकी लोगों से उसकी भी बुराई करने में पीछे नही हटते। आपके मुंह पर आपकी भलाई और पीठ पीछे आपकी बुराई करते रहते हैं।
इस पर कुछ लोगो का ये भी मत हो सकता है कि आजकल भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में किसी के पास इतना समय नहीं है कि एक हफ्ते किसी कार्यक्रम में शामिल हुआ जा सके। इस पर मेरा विचार यह है कि यह आवश्यक नही की हम किसी कार्यक्रम में अपना नुकसान करके शामिल हो परंतु आवश्यक यह है कि हम निःस्वार्थ भाव से शामिल हो किसी की मदद करके उसका सम्मान बढ़ाने की सोच के साथ शामिल हो, जिस काबिल हम हैं जो कार्य हम कर सकते हैं वो कार्य करने के उद्देश्य से शामिल हो। किसी प्रकार की लालच या किसी को नीचा दिखाने के उद्देश्य से किसी कार्यक्रम में शामिल होना महानता नहीं। अगर हम किसी की प्रसंशा नहीं कर सकते तो हमें किसी की बुराई भी नहीं करनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति का अपना सम्मान होता है और वह उसे पाने का अधिकारी भी हैं।
कुछ लोग अगर यह समझते हैं कि वो दूसरो को नीचा दिखाकर या दूसरों का अपमान करके बहुत अच्छा करते हैं और समाज में अपना मान बढ़ाते हैं तो माफ कीजिये वो लोग बिल्कुल गलत समझते हैं। जो मान हम किसी का सम्मान करके प्राप्त कर सकते हैं वो किसी का अपमान करके कभी भी प्राप्त नहीं कर सकते। आजकल लोग दिखावा करना ज्यादा पसंद करते हैं, और लोग दिखावे की तरफ आकर्षित भी होते हैं।लोग दौलत के लिए रोज़ नए-नए रिश्ते बनाते है, पर वो रिश्ते जो दौलत की लालच में बनाये जाते हैं वो दौलत के साथ ही समाप्त भी हो जाते हैं।
हमे अपने आने वाली पीढ़ी को रिश्तो और रिश्तेदारों के प्रति जागरूक करना चाहिए उन्हें यह अवश्य सिखाना चाहिए कि सही मायने में रिश्ते कैसे निभाये जाते हैं। रिश्तों को कभी भी दौलत से नहीं मापना चाहिए कोई भी रिश्तेदार अमीर या गरीब नहीं होता। हमें सभी रिश्तेदारों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए। हमें अपने से छोटे भाई-बहनों का भी उतना ही सम्मान करना चाहिए जितना कि हम अपने से बड़े भाई-बहनों का करते हैं।
जो रिश्ते प्रेम, विश्वास और निस्वार्थ भाव के साथ बनाये जाते हैं वो अटूट होते हैं।
हमें अपने बीते हुए कल से सीख लेकर आने वाले कल को सवारनें के लिए आज से ही अपने बच्चों और भाई-बहनों को रिश्तों के प्रति जागरूक करना चाहिए।
उन्हें उन रिश्तेदारों के प्रति भी जागरूक करना चाहिए जो दूसरों का अपमान करने में ही अपना सम्मान समझते हैं जिनको आपका अहित करने में ही प्रसन्नता होती है उन रिश्तों को तोड़ देने में ही भलाई है।
रिश्ते वही सच्चे जो सुख दुख में आपके साथ बने रहें।
दोस्तो आपको मेरे विचार कैसे लगे नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अवश्य अवगत कराएं।
आपके प्यार भरे विचारो की प्रतीक्षा में।
आपके प्यार भरे विचारो की प्रतीक्षा में।
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