कल आज और कल

कल आज और कल

Sunday, June 28, 2020

रहीम दास के दोहे

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।

सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥

भावार्थ:-

रहीम दास जी कहते हैं कि अपने दु:ख अपने मन में ही रखने चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।


रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर ।

जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ।।

भावार्थ:- 

रहीम दास जी कहते है कि जब ख़राब समय चल रहा हो तो मौन रहना ही ठीक है। क्योंकि जब अच्छा समय आता हैं, तब काम बनते देर नहीं लगतीं । अतः हमेशा अपने सही समय का इंतजार करे ।


बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।।

भावार्थ:-

रहीमदास कहते हैं कि मनुष्य को बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए । क्योंकि अगर किसी कारणवश कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल होता है, जैसे दूध खराब हो जाये, तो हजार कोशिश करने के बाद भी उसमे से न तो मक्खन बनता है और न ही दूध ।


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान ।

कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

भावार्थ :-

जिस प्रकार पेड़ अपने फल को कभी नहीं खाते हैं, तालाब अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी अपना इकट्ठा किये हुए धन से दूसरों का भला करते हैं।


एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

भावार्थ :-

 इस दोहे में रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए । तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।


रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

भावार्थ :-

 इस दोहे में रहीमदास जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। जिस जगह सुई से काम हो जाये वहां तलवार का कोई काम नहीं होता है। हमें समझना चाहिए कि हर बड़ी और छोटी वस्तुओं का अपना महत्व अपने जगहों पर होता है । बड़ों की तुलना में छोटो की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।


रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

भावार्थ :-

रहीम जी कहते हैं संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है ।इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य हो , जीव-जंतु हों या अन्य कोई वस्तु। ‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।


छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।

कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

भावार्थ :-

 छोटे यदि गलतियाँ करें तो उससे किसी को कोई हानि नही पहुँचती है । अतः बड़ों को उनकी गलतियों को माफ़ कर देना चाहिये ।


खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।

रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

भावार्थ :-

रहीम दास कहतें है कि "कुछ चीजें लाख जातां के बाद भी नहीं छुप सकतीं है जैसे " खैरियत (अच्छा भला स्वास्थ्य), खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।


यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय 

बैर, प्रीति, अभ्यास जस, होत होत ही होय 

भावार्थ:-

रहीम दास जी कहतें है कि दुश्मनी, प्रेम, अभ्यास और यश या मान-सम्मान के साथ कोई मनुष्य अपने साथ लेकर पैदा नहीं होता। या चीजें धीरे-धीरे मनुष्य के आचरण और प्रयासों के साथ बढ़ती हैं।


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय.

भावार्थ :-

 रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो जिस प्रकार टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है. ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मन में भी गांठ पद जाती है.

1 comment: