दोस्तों टिफ़िन से तो आप सभी लोग भली - भांति परिचित ही हैं।
टिफ़िन, लंच बॉक्स, डब्बा, सब वही तो है, जिसमे हम सभी लोग खाना ले जाते हैं।
दोस्तों, ये डब्बा ना.... बड़े ही काम की चीज़ है।
आपको दुनिया में कहीं भी जाना हो, चाहे सफ़र में, चाहे ऑफिस या फिर स्कूल, डब्बा हर जगह आपका साथ निभाता है।
दोस्तों, ये डब्बा ना.... बड़े ही काम की चीज़ है।
आपको दुनिया में कहीं भी जाना हो, चाहे सफ़र में, चाहे ऑफिस या फिर स्कूल, डब्बा हर जगह आपका साथ निभाता है।
दोस्तों मेरा और मेरे टिफ़िन का रिश्ता स्कूल के दिनों से शुरू हुआ, जो आज तक उसी तरह क़ायम है, जैसा कि स्कूल के दिनों में था ।
स्कूल के दिनों में मम्मी रोज़ सुबह अच्छा - अच्छा खाना बना कर टिफ़िन में देती थी, और स्कूल में हम सारे दोस्त एक साथ बैठ कर खाते थे ।
जिसको जो अच्छा लगता था, हम एक दूसरे के टिफ़िन से निकाल कर खा लेते थे ।
हम रोज़ स्कूल में ही तय कर लेते थे, कि कल सबको अपने - अपने घर से क्या लेकर आना है। और अगले दिन सब वही लेकर आते थे, और मज़े से खाते थे ।
स्कूल के दिनों में मम्मी रोज़ सुबह अच्छा - अच्छा खाना बना कर टिफ़िन में देती थी, और स्कूल में हम सारे दोस्त एक साथ बैठ कर खाते थे ।
जिसको जो अच्छा लगता था, हम एक दूसरे के टिफ़िन से निकाल कर खा लेते थे ।
हम रोज़ स्कूल में ही तय कर लेते थे, कि कल सबको अपने - अपने घर से क्या लेकर आना है। और अगले दिन सब वही लेकर आते थे, और मज़े से खाते थे ।
आज भी, जबकि मैं नौकरी करने लगा हूँ, लेकिन मेरा और मेरे टिफ़िन का रिश्ता वैसा ही है, जैसा कि स्कूल के दिनों में था ।
आज भी मैं सुबह तैयार होता हूँ, और टिफ़िन लेकर ही ऑफिस जाता हूँ, और वहाँ सभी सहकर्मियों के साथ बैठ कर मज़े से खाना खाता हूँ।
सहकर्मियों के साथ बैठ कर खाने से जहाँ एक तरफ खाने का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे को समझने का उनके साथ समय बिताने का भी अवसर मिल जाता है, जिससे आपसी प्रेम सम्बंध और भी प्रगाढ़ होते हैं।
एक दूसरे के टिफ़िन से छीन कर खाने का मज़ा तो बस साथ में बैठ कर खाने से ही आता है।
लेकिन दोस्तों कुछ लोगों का नज़रिया टिफ़िन को लेकर बहुत अच्छा नहीं होता है !
शायद वो टिफ़िन लेकर जाने में खुद का अपमान समझते हैं।
या फिर वो ये सोचते हैं, कि कौन ? इस डब्बे को इतनी दूर लाद कर ले जाए !
शायद वो टिफ़िन लेकर जाने में खुद का अपमान समझते हैं।
या फिर वो ये सोचते हैं, कि कौन ? इस डब्बे को इतनी दूर लाद कर ले जाए !
और कुछ लोग तो इतने चटोरे होते हैं कि, वो सोचते है, टिफ़िन लाद कर ले जाने से अच्छा है, कि बाहर जाकर कुछ अच्छा सा तड़कता भड़कता खाएंगे।
और इस चक्कर में वो घर का स्वादिष्ट खाना न ले जाकर, बाहर का धूल से तड़कता और धूप में भड़कता खाना - खाना पसन्द करते हैं।
और बहुत से लोग तो बस इसलिए टिफ़िन लेकर नहीं आते, कि उनके साथी मित्र क्या कहेंगे ?
कि ये अभी भी छोटा बच्चा है ! ये अभी भी टिफ़िन लेकर आता है... कितनी..... भूख लगती है इसको ?
तो ....दोस्तों मेरी मानिए तो ये सब बेकार की बातें हैं । इनको भूल कर आगे बढ़िए, और आपका अपना मन है, आपकी अपनी भूख है, और आपका अपना खाना है, जितना मन आए दबा के खाइये ।
और बहुत से लोग तो बस इसलिए टिफ़िन लेकर नहीं आते, कि उनके साथी मित्र क्या कहेंगे ?
कि ये अभी भी छोटा बच्चा है ! ये अभी भी टिफ़िन लेकर आता है... कितनी..... भूख लगती है इसको ?
अरे भाई कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना.......
और वैसे भी हमें घर का पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन ही खाना चाहिए, और ले भी जाना चाहिए ।
टिफ़िन का अपना अलग ही मज़ा है। और दोस्तों के साथ बैठ कर खाने से ये मज़ा और भी बढ़ जाता है।
टिफ़िन का अपना अलग ही मज़ा है। और दोस्तों के साथ बैठ कर खाने से ये मज़ा और भी बढ़ जाता है।
कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अपनी राय अवश्य दे ।
यही मेरे लिए मेरा पुरस्कार है।
धन्यवाद ।।
वास्विकता के बहुत करीब.. बहूत खूब
ReplyDeleteधन्यवाद सौरभ जी ।
DeleteBohot Achhe
ReplyDeleteधन्यवाद सर ।
DeleteHahaha bahut accha likha h bhaiya aapne kuch habits match Keri h
ReplyDeleteधन्यवाद जी
DeleteI miss your lunch box
ReplyDeleteधन्यवाद ।
DeleteGood one
ReplyDeleteआभार
Deleteवाह....बहुत ही अच्छा.......बिल्कुल सही और सटीक लिखा है........
ReplyDeleteआभार निशा
Deleteआपने सहकर्मी के टिफिन की लूट पाट कर खाने का जिक्र तो किया ही नहीं।वैसे अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteजी धन्यवाद सर ।
ReplyDeleteVery nice rudra bhai..keep it up..
ReplyDeleteधन्यवाद जी ।
DeleteGood
Deleteआभार आपका ।
Deleteबहुत अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteआभार आपका ।
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