भारतवर्ष के उत्तरप्रदेश राज्य में एक छोटा सा गाँव है - डिण्डौली ।
हरे भरे खेत खलिहानों और बाग बगीचों से घिरे हुए इस सुन्दर से गाँव में दस से बारह घर ही हैं, और उनमें से ज्यादातर परिवार खेती बाड़ी करके ही अपना जीवन यापन करते हैं। और कुछ... एक गिने चुने लोग भी हैं, जो धन और धान्य दोनों से सम्पन्न हैं, उनमें से एक हैं, गाँव के प्रधान जी "श्री राम बहल" जी ।
राम बहल जी का सरकार में कई बड़े - बड़े मंत्रियों के साथ रोज़ का उठना बैठना है । बड़े ही रसूख वाले व्यक्ति हैं, प्रधान जी ।
लेकिन फिर भी वे सादा जीवन उच्च विचार वाली विचारधारा को मानते हैं। और सभी ग्रामवासियों की हर सम्भव मदद करने की कोशिश में लगे रहते हैं ।
इसी गाँव में अजीत मिश्रा उर्फ अज्जू भी अपनी धर्मपत्नी कामिनी मिश्रा के साथ रहते हैं। मिश्रा जी अपनी पत्नी को प्यार से कम्मो कह कर बुलाते हैं।
गाँव के एक छोर पर ही उनका छोटा सा मिट्टी की चमकदार दीवारों और सरपत के छप्पर से बना घर है। घर के सामने ही उनका दो बीघा खेत है, जो मिश्रा जी को अत्यंत प्रिय है । ये खेत ही उनकी जीविका का एकमात्र साधन है, जिसमें काम करके मिश्रा जी किसी तरह अपना और अपने परिवार का ससम्मान भरण पोषण करते हैं।
मिश्रा जी का एक बेटा है विनय, जो कि बी0 ए0 की पढ़ाई पूरी करने के बाद, जी - जान से सरकारी दामाद बनने की कोशिश में लगा है।
और एक बेटी है किरन जो कि इंटर की पढ़ाई करती है, और घर के सभी कार्यों में अपनी माँ का हाथ बटाती है।
किरन एक निहायत ही खूबसूरत, श्याम रंग वाली लड़की है। जिसकी शादी को लेकर पूरा मिश्रा परिवार दिन रात चिंता में डूबा रहता है।
और उनकी इस चिंता को केवल बिन्नू अर्थात विनय ही सरकारी दामाद बनकर दूर कर सकता है।
क्योंकि किरन के लिए जो लड़का देखा गया है, वो शहर के किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी है, और लड़के वालों ने दहेज में चार पहिया वाहन की मांग की है।
अब मिश्रा जी के पास इतने पैसे तो हैं नहीं कि, गाड़ी देकर बिटिया रानी को विदा कर दें, इसलिए केवल सगाई कर के छोड़ दिया है, ताकि इतना बढ़िया रिश्ता कहीं हाथ से निकल न जाये ।
अब पूरे परिवार को बस बिन्नू से ही उम्मीदें हैं, कि जैसे ही बिन्नू को सरकारी नौकरी मिले वैसे ही बिटिया के हाथ पीले कर दिए जाएं ।।
पर पिछले चार साल से विनय बाबू लगातार सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे हैं, पर नौकरी है... कि हाथ ही नहीं आती ।
चार साल में ऐसी कोई परीक्षा नहीं हुई होगी, जो बिन्नू भैया ने न दी हो, पर निराशा ही हाथ लगी ।
कभी कोई परीक्षा नकल के कारण निरस्त हो गयी, तो किसी के लिए कोई सुप्रीम कोर्ट चला गया, किसी का तो परिणाम ही नहीं आया और जिसका परिणाम भी आया, उसमे बिन्नू भैया का नाम नहीं आया ।
आवेदन फॉर्म के पैसे बेकार हो गए वो अलग ।
इधर किरन के ससुराल वाले भी अज्जू पर किरन की शादी जल्द से जल्द करने के लिए दबाव बनाने लगे हैं, कहते हैं- चार साल हो गए सगाई को अगर शादी न करनी हो तो साफ साफ बता दो रिश्तों की कमी नहीं है...... मेरे बेटे के लिए ।
अज्जू ने किसी तरह कह सुन कर बड़ी मुश्किल से किरन के ससुराल वालों से एक साल का और समय माँगा है, अब अज्जू को एक ही रास्ता नज़र आता है, कि वो अपना खेत बेचकर अपनी बिटिया के हाथ पीले कर दे ।
एक दिन विनय की मुलाकात उसके मित्र महेश से होती है। हाल चाल होने के बाद महेश कहता है, यार विनय सुना है, कि... इस बार लेखपाल वाली सीधी भर्ती में दक्षिणा चल रही है।
भर्ती विभाग के मंत्री श्री "रामपाल यादव" जी ने कहा है कि दक्षिणा दो, और नौकरी ले जाओ। और फिर तूने भी तो आवेदन किया है।
देख ले भाई कुछ ले दे के हो जाये तेरा.......... तो अच्छा है।
अच्छा बिन्नू अब मैं चलता हूँ बाय । इतना कहकर महेश चला जाता है ।
इतना सुनकर बिन्नू दौड़ता हुआ, अपने घर की ओर भागा , मानो जैसे उसे एक नई उम्मीद मिल गयी हो । अब उसे अपना सपना पूरा होता हुआ दिख रहा था ।
घर पहुँच कर बिन्नू पूरी बात अपने पिता को बताता है। और झट से अपने पिता को साथ में लेकर प्रधान जी के पास जाता है ।
राम बहल जी दोनों को बताते है कि, आप लोगों ने जो भी सुना है, वो एकदम सही है।
इस बार आठ लाख रुपये दक्षिणा लग रही है, दक्षिणा लाओ और आपकी लेखपाल पद की सीट पक्की ।
चुनाव सर पर है, किसी भी समय चुनाव की घोषणा हो सकती है, इसलिए प्रत्येक सीट का दाम मंत्री जी ने फिक्स रखा है। आजकल चुनाव में बहुत रुपया खर्च होने लगा है। सारा खेल अब पैसे का ही है । अरे भाई...... अब तो वोटर भी खरीदना पड़ता है ।
पूरी भर्ती प्रक्रिया चुनाव के पहले ही सम्पन्न कर दी जाएगी, इसलिए पूरा खेल एक से दो महीने में ही खत्म हो जाएगा ।
अज्जू भइया आप तो बस पैसा ले आओ, बाकी का सारा काम मुझ पर छोड़ दो, आखिर बिन्नू मेरा भी तो लड़का है।
इतना सुनकर दोनों प्रधान जी से विदा लेकर घर वापस आ जाते हैं।
घर आकर अज्जू बहुत ही दबे स्वर में, कम्मो से कहता है कि आखिर आठ लाख रुपये कहाँ से लाऊं ?
खुद को बहुत ही असहाय महसूस कर रहा हूँ मैं ।
खेत बेचने के सिवाय मेरे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं है, लेकिन फिर किरन की भी तो शादी करनी है, तब क्या करूँगा ??
इतना कहते ही अज्जू की आंखे उसका साथ छोड़ देती है और अश्रु धारा तीव्र वेग के साथ बहने लगती है।
फिर कम्मो उसे समझाती है, कि आप खेत बेचकर प्रधान जी को पैसे दे दीजिए, जिससे अपने बिन्नू को नौकरी मिल जाएगी, और फिर हमारा बिन्नू अपनी बहन किरन की शादी भी धूम धाम से करा देगा । हम लोग किसी तरह
किरन के ससुराल वालों से कुछ वक्त और मांग लेंगे ।
हमारा बिन्नू हमारे बुढ़ापे की लाठी है, वो नौकरी पाने के बाद सब ठीक कर देगा ।
आप चिंता मत कीजिये , मेरा विश्वास कीजिये आप ।
कम्मो की बात सुनकर अज्जू मान जाता है।
और अपने एकमात्र जीवकोपार्जन के ज़रिए, अपने प्रिय खेत को दस लाख रुपये में बेच कर प्रधान जी को पूरे आठ लाख रुपये दे देता है।
रुपये पाकर प्रधान जी कहते है... अरे अज्जू भइया अब काहे मुँह लटकाए खड़े हो, अरे...... अब तो खुश हो जाओ अब आपका बिन्नू समझो लेखपाल बन गया ।
पूरा घर बिन्नू को लेखपाल मान कर बहुत खुश होता है । सभी के चेहरे पर संतुष्टि का भाव है, कि आख़िर हमारा बिन्नू सरकारी दामाद बन गया ।
लेकिन घर के एक कोने में खटिया पर बैठे अज्जू भइया के चेहरे को पढ़ पाना थोड़ा मुश्किल है, जहाँ एक तरफ उनको ये संतुष्टि है, कि आज वो अपने बेटे के लिए कुछ कर पाए, वही दूसरी तरफ उनको इस बात का दुःख भी है, कि वो अपने पुरखों का खेत नहीं बचा सके, जो उन्हे उनकी यादों से जोड़ता था ।
ख़ैर इसी तरह पूरे चार महीने बीत गए और आज बिन्नू भैया को लखनऊ जॉइनिंग करने जाना है।
आज पूरा गाँव बिन्नू को विदाई देने के लिए एकत्र हुआ है।
आज पूरा घर बहुत खुश है, किरन अपने भाई को बड़ी ही आशा वाली नजरों से देखती है, और जाने के पहले उसकी आरती उतारती है, और टीका करती है, और कम्मो अपने बेटे को दही चीनी खिलाती है, और फिर बिन्नू माता पिता का आशीर्वाद लेकर लखनऊ के लिए निकल पड़ता है।
लखनऊ पहुँच कर बिन्नू देखता है, कि कार्यालय के सामने बहुत भीड़ लगी हुई है। लोग ज़ोर - ज़ोर से मुर्दाबाद - मुर्दाबाद और हाय - हाय के नारे लगा रहे हैं।
भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात है, भीड़ को क़ाबू कर पाना मुश्किल हो रहा है।
बिन्नू समझ नही पाता है कि यहां क्या हो रहा है ??
इसलिए वह बगल में खड़े एक व्यक्ति से पूछता है, कि भाई साहब यहां क्या हो रहा है ??
वह व्यक्ति जो कि पहले से रो रहा होता है, बिन्नू को बताता है, कि भाई साहब हम सब लोग यहाँ लेखपाल पद की जॉइनिंग करने के लिए आये हैं, लेकिन पिछली सरकार में हुई इस सीधी भर्ती को नई सरकार ने असंवैधानिक तरीके से हुई भर्ती बताकर निरस्त कर दिया है।
अब यहाँ किसी को नौकरी नहीं मिलेगी.....किसी को नहीं इसीलिए हम सब यहाँ विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं।
लेकिन अब क्या होगा..... अब तो जो होना था....., हो गया !
इतना सुनते ही बिन्नू के पैरों के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई हो ।
उसकी आँखों के सामने सब कुछ काला- काला हो गया था, उसको दिखाई देना बंद हो गया था ।
वह अपने मुँह से चाह कर भी कुछ नहीं बोल पा रहा था ।
उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गयी थी । जो पास में खड़े किसी भी व्यक्ति को आसानी से सुनाई दे जाती, और उसके हाथ - पैर कांप रहे थे । पूरा शरीर पसीने से भीग गया था और मुंह जलते हुए सूरज की भांति लाल हो गया था ।
वो बस चलता चला जा रहा था......., उसके दिमाग में उसकी बहन किरन की शक्ल और उसकी शादी की चिंता, उसकी माँ की उम्मीदें, पिता का जान से प्यारा खेत और अपनी ज़िम्मेदारिया किसी फिल्म की तरह लगातार घूम रहीं थीं ।
उसका दिमाग तेज़ ज्वालामुखी की तरह फटा जा रहा था ।
अब उसे उसके सामने कोई और रास्ता नज़र नहीं आ रहा था । क्या करूँ ! कहाँ जाऊ !
वह अपने जीवन से हार गया था । इसलिए, अपने दिमाग को शांत करने के लिए वह गोमती नदी में कूद गया ।
और इस संसार और अपनी जिम्मेदारियों से हमेशा - हमेशा के लिए मुक्त हो गया ।
दक्षिणा दे कर नौकरी पाना और जीवन से हार जाना दोनों ही कायरता है ।
बहुत ही मार्मिक और आज के समय काल को सत्यार्थ करती हुई कहानी.....
ReplyDeleteBitter truth of our time .
ReplyDeleteAwesome.. Reality of life...
ReplyDeleteवाह......बहुत ही अच्छा प्रयास किया है........ये कहानी वर्तमान समय की बेरोजगारी की समस्या और उससे जुड़ी परेशानियों को पूरी तरह उजागर करती है...........
ReplyDeleteसभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद ।।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखे हो रुद्र भैया।आपकी लेखनी मे सजीवता दिखाई पडी।
ReplyDeleteआभार आपका श्रीमान ।
DeleteParipakvata àa gai hai .
ReplyDeleteBahut badhiya likha hai
Very good
Thanks a lot
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