कल आज और कल

कल आज और कल

Monday, March 28, 2022

सीनियर सिटीजन सेविंग स्कीम

वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS) एक सरकार समर्थित बचत योजना है जो 60 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय निवासियों के लिए बनाई गयी है, इस योजना का उद्देश्य रिटायर्मेंट के बाद वरिष्ठ नागरिकों को एक रेगुलर इनकम प्रदान करना है। SCSS सार्वजनिक व निजी क्षेत्र के बैंकों और भारत के डाकघरों के माध्यम से उपलब्ध है। सरकार द्वारा समर्थित होने के नाते इस पर मिलने वाले रिटर्न गारन्टीड हैं।

 योग्यता शर्तें

यदि आप निम्नलिखित शर्ते पूरी करते हैं, तो आप SCSS में निवेश करने के लिए योग्य हैं:

  • 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग
  • 55-60 वर्ष की आयु वर्ग के रिटायर लोग, जिन्होंने वोलंटरी रिटायर्मेंट स्कीम (VRS) को चुना हो
  • रिटायर रक्षा कर्मी, जिनकी उम्र न्यूनतम 60 वर्ष हो

*रिटायर्मेंट के लाभ उठाने के एक महीने के भीतर निवेश किया जाना चाहिए।

नोट: HUF और NRI वरिष्ठ नागरिक बचत योजना में निवेश करने के लिए योग्य नहीं हैं


वरिष्ठ नागरिक बचत योजना में निवेश करने के लाभ

वो प्रमुख कारण नीचे दिए गए हैं कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए SCSS एक पसंदीदा निवेश विकल्प क्यों है:

गारंटीड रिटर्न: चूंकि SCSS सरकार समर्थित लघु बचत योजना है, यह वरिष्ठ नागरिकों के लिए सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय निवेश विकल्पों में से एक है।

उच्च ब्याज दर: 7.4% प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने के कारण एससीएसएस सबसे फायदेमंद निवेश विकल्पों में से है, विशेष रूप से एफडी और बचत खाते जैसे पारंपरिक निवेश विकल्पों की तुलना में।

टैक्स लाभ: आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत, Senior Citizen Saving Scheme में निवेश कर आप 1.5 लाख रु. प्रति वर्ष टैक्स छूट का क्लेम कर सकते हैं।

सरल निवेश प्रक्रिया: SCSS में निवेश की प्रक्रिया काफी सरल है। आप भारत में किसी भी अधिकृत बैंक या किसी भी डाकघर में SCSS अकाउंट खोल सकते हैं।

त्रैमासिक ब्याज भुगतान: एससीएसएस के तहत, ब्याज राशि का भुगतान त्रैमासिक (हर तीन महीनों में) में किया जाता है, जो आपके निवेश में अवधि के भुगतान को सुनिश्चित करता है। ब्याज प्रत्येक अप्रैल, जुलाई, अक्टूबर और जनवरी के पहले दिन जमा किया जाएगा।

सीनियर सिटिज़न सेविंग स्कीम: कितनी राशि जमा कर सकते हैं

योग्य निवेशक वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS) में लमसम राशि जमा कर सकते हैं।

न्यूनतम जमा राशि- ₹ 1,000

अधिकतम जमा राशि- ₹ 15 लाख या रिटायर्मेंट पर प्राप्त राशि, जो भी कम हो

जबकि एससीएसएस खातों में जमा नकद में किया जा सकता है, लेकिन केवल 1 लाख रु. से कम की राशि नकदी में जमा करने अनुमति है। इससे अधिक राशि जमा करने के लिए  चेक / डिमांड ड्राफ्ट का उपयोग करना अनिवार्य है।

Senior Citizen Saving Scheme: मैच्योरिटी पीरियड

खाता खोलने की तारीख से 5 साल के बाद एक वरिष्ठ नागरिक बचत योजना मैच्योर हो जाती है। हालाँकि, खाता धारक के पास मैच्योर होने के बाद खाते को अतिरिक्त 3 साल तक बढ़ाने का विकल्प होता है। यह एक्सटेंशन विकल्प वर्तमान में सिर्फ एक बार उपलब्ध है और खाता मैच्योर होने के 1 वर्ष के भीतर विस्तार के लिए अनुरोध कर देना चाहिए


वरिष्ठ नागरिक बचत योजना: मैच्योर होने से पहले पैसे निकालने के नियम

वरिष्ठ नागरिक बचत योजना में समय से पहले पैसे निकालने की अनुमति है, लेकिन खाता खोलने और निकासी के बीच के समय के आधार पर ऐसे मामलों में दंड लागू होते हैं। SCSS के समयपूर्व निकासी के दंड इस प्रकार है:

  • खाता खोलने की तारीख से 2 साल पूरा होने से पहले योजना बंद करने पर जमा राशि का 1.5जुर्माना के रूप में काटा जाता है।
  • खाता खोलने के 2 से 5 साल के बीच योजना से बाहर निकलने पर जमा राशि का 1% जुर्माने के रूप में काटा जाता है।

खाताधारक की मृत्यु हो जाने पर क्या होगा?

खाते मैच्योर होने पहले प्राथमिक खाता धारक की मृत्यु की स्थिति में, खाता बंद कर दिया जाएगा और सभी मैच्योर इनकम कानूनी वारिस / नामित व्यक्ति को ट्रान्सफर कर दी जाएगी। मृत दावों के लिए, नामांकित व्यक्ति या कानूनी वारिस को खाता बंद करने की सुविधा के लिए डेथ सर्टिफिकेट के साथ निर्धारित फ़ॉरमेट में लिखित आवेदन भरना होगा।


वरिष्ठ नागरिक बचत योजना खाता कैसे खोलें?

आप देश के किसी भी अधिकृत बैंक या डाकघर की शाखाओं में वरिष्ठ नागरिक बचत योजना खाता खोल सकते हैं।


वरिष्ठ नागरिक बचत योजना पर लागू टैक्स नियम

SCSS में किया गया निवेश भी निम्नलिखित तरीके से टैक्स में छूट के लिए योग्य है:

  • SCSS में जमा की गई मूल राशि 1.5 लाख रु. प्रति वर्ष आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 80 सी के तहत टैक्स में छूट के लिए योग्य है
  • एससीएसएस पर मिलने वाले ब्याज पर व्यक्ति पर लागू टैक्स स्लैब के अनुसार टैक्स लगेगा। अगर एक वित्तीय वर्ष में कमाया गया ब्याज 50,000 रु. से अधिक है, तो उस टैक्स डिडक्ट एट सोर्स (टीडीएस) लगेगा। SCSS निवेश पर टीडीएस कटौती वर्ष 2020-21 के बाद से लागू है।

Sunday, June 28, 2020

रहीम दास के दोहे

रहिमन निज मन की व्यथा, मन में राखो गोय।

सुनि इठलैहैं लोग सब, बाटि न लैहै कोय॥

भावार्थ:-

रहीम दास जी कहते हैं कि अपने दु:ख अपने मन में ही रखने चाहिए। दूसरों को सुनाने से लोग सिर्फ उसका मजाक उड़ाते हैं परन्तु दु:ख को कोई बांटता नहीं है।


रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर ।

जब नीके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर ।।

भावार्थ:- 

रहीम दास जी कहते है कि जब ख़राब समय चल रहा हो तो मौन रहना ही ठीक है। क्योंकि जब अच्छा समय आता हैं, तब काम बनते देर नहीं लगतीं । अतः हमेशा अपने सही समय का इंतजार करे ।


बिगड़ी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय ।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय ।।

भावार्थ:-

रहीमदास कहते हैं कि मनुष्य को बुद्धिमानी से व्यवहार करना चाहिए । क्योंकि अगर किसी कारणवश कुछ गलत हो जाता है, तो इसे सही करना मुश्किल होता है, जैसे दूध खराब हो जाये, तो हजार कोशिश करने के बाद भी उसमे से न तो मक्खन बनता है और न ही दूध ।


तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान ।

कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

भावार्थ :-

जिस प्रकार पेड़ अपने फल को कभी नहीं खाते हैं, तालाब अपने अन्दर जमा किये हुए पानी को कभी नहीं पीता है। उसी प्रकार सज्जन व्यक्ति भी अपना इकट्ठा किये हुए धन से दूसरों का भला करते हैं।


एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय ।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

भावार्थ :-

 इस दोहे में रहीम दास जी ने कहा है कि जिस प्रकार पौधे को जड़ से सींचने से ही फल फूल मिलते हैं । उसी प्रकार मनुष्य को भी एक ही समय में एक कार्य करना चाहिए । तभी उसके सभी कार्य सही तरीके से सफल हो पाएंगे।


रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि ।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तलवारि॥

भावार्थ :-

 इस दोहे में रहीमदास जी ने बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। जिस जगह सुई से काम हो जाये वहां तलवार का कोई काम नहीं होता है। हमें समझना चाहिए कि हर बड़ी और छोटी वस्तुओं का अपना महत्व अपने जगहों पर होता है । बड़ों की तुलना में छोटो की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए ।


रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।

पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

भावार्थ :-

रहीम जी कहते हैं संसार में पानी के बिना सब कुछ बेकार है ।इसलिए पानी को हमें बचाए रखना चाहिए। पानी के बिना सब कुछ व्यर्थ है चाहे वह मनुष्य हो , जीव-जंतु हों या अन्य कोई वस्तु। ‘मोती’ के विषय में बताते हुए रहीम जी कहते हैं पानी के बिना मोती की चमक का कोई मूल्य नहीं है। ‘मानुष’ के सन्दर्भ में पानी का अर्थ मान-सम्मान या प्रतिष्ठा को बताते हुए उन्होंने कहा है जिस मनुष्य का सम्मान समाप्त हो जाये उसका जीवन व्यर्थ है।


छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।

कह रहीम हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

भावार्थ :-

 छोटे यदि गलतियाँ करें तो उससे किसी को कोई हानि नही पहुँचती है । अतः बड़ों को उनकी गलतियों को माफ़ कर देना चाहिये ।


खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।

रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान॥

भावार्थ :-

रहीम दास कहतें है कि "कुछ चीजें लाख जातां के बाद भी नहीं छुप सकतीं है जैसे " खैरियत (अच्छा भला स्वास्थ्य), खून, खांसी, खुशी, दुश्मनी, प्रेम और मदिरा का नशा छुपाए नहीं छुपता है।


यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय 

बैर, प्रीति, अभ्यास जस, होत होत ही होय 

भावार्थ:-

रहीम दास जी कहतें है कि दुश्मनी, प्रेम, अभ्यास और यश या मान-सम्मान के साथ कोई मनुष्य अपने साथ लेकर पैदा नहीं होता। या चीजें धीरे-धीरे मनुष्य के आचरण और प्रयासों के साथ बढ़ती हैं।


रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय.

भावार्थ :-

 रहीम दास जी कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता. यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो जिस प्रकार टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है. ठीक उसी प्रकार मनुष्य के मन में भी गांठ पद जाती है.

Sunday, August 4, 2019

विश्वासपात्र




जनवरी की कड़ कड़ाती ठंडी की  रात में नौ बजे दरवाज़े की घंटी सुनकर जब श्रीमती सुधा सक्सेना जी ने दरवाज़ा  खोला तो देखा सामने उनका ड्राइवर गुड्डू किसी लड़के के साथ खड़ा था ।

सुधा को देखते ही गुड्डू ने उनके पैर छुए और बोला पायँ लागू चाची जी, चाची ये मेरा दोस्त है मंटू ।
चरण स्पर्श करो चाची के .... गुड्डू ने मंटू से कहा ......
खुश रहो खुश रहो बेटे....... सुधा चाची  बोली ।

और बताओ गुड्डू बेटे कैसे हो ??
श्रीमान सक्सेना जी ने पीछे से आकर पूछा ..........
पायँ लागू चाचा जी ..........गुड्डू बोला ।
हाँ खुश रहो, खुश रहो बेटा..... ।

अरे.............. गुडडू बेटा ये कौन है ??
ये किसे ले आये हो....... अपने साथ ??

चाचा जी ये मेरा दोस्त मंटू है, आज ही गाँव से आया है ।
काम की तलाश में, यहाँ रहकर कोई काम धंधा ढूंढेगा ।
इसके पास ठहरने की कोई जगह नहीं थी, तो मैं इसे अपने साथ ले आया ।

चाचा जी अगर आपकी इजाज़त हो तो, ये आज रात मेरे साथ यहीं रुक जाए ।
और कल से अपने लिए कोई और  ठिकाना खोज लेगा ।

अरे इसमें पूछने की क्या बात है , गुड्डू  बेटा तुम दोनों रुक जाओ, आखिर यह भी तो तुम्हारा ही घर है। 
चाची बोली.............

नहीं सुधा नहीं ......... चाचा जी ने चाची का विरोध करते हुए कहा..........
जिसे हम जानते नहीं उसे हम अपने घर के अंदर  कैसे रुकने दे.......
अगर तुम लोगों को  रुकना ही है, तो तुम दोनों आज रात यहीं बाहर बरामदे में सो जाओ..........
चाचा जी बोले ।

इतना कह कर चाचा जी दूसरे कमरे में चले जाते हैं।

चाची बात को संभालते हुए बोली, अरे..... बेटा तुम लोग चिंता मत करो, ये तो ऐसे ही बड़बड़ाते रहते हैं, मैं इनको समझा बुझा कर मना ही लूंगी।  

अच्छा.......... गुड्डू बेटा तुम लोग बातें करो तब तक मैं सबके लिए खाने का प्रबंध करती हूँ । इतना कहकर चाची भी रसोई में चली जाती है।

गुड्डू और मंटू वही सोफे पर बैठ कर बातें करते हैं- जानता है मंटू यही मेरे मालिक हैं, रमेश सक्सेना ये एक बहुत बड़े सरकारी डॉक्टर है, और ये उनकी धर्मपत्नी हैं, सुधा सक्सेना बहुत ही सीधी सादी हैं।

अच्छा और कौन - कौन रहता है इनके साथ  मंटू ने पूछा ,

अबे और कोई नहीं रहता , बस यही दो लोग रहते हैं, इनका एक बेटा है, कुशल जो ऑस्ट्रेलिया में डॉक्टरी की पढ़ाई करता है , और एक बेटी है, विभा जो मलेशिया में डॉक्टरी की पढ़ाई करती है।

यहाँ पर बस यही दो लोग रहते है।

अबे इतने बड़े 4000 sq. ft के घर में सिर्फ यही दो लोग रहते हैं ?  मंटू ने आश्चर्य से पूछा ।

अबे हाँ बे....... गुड्डू बोला ।

तब तो यही, सही अवसर है, अपने काम को अंजाम देने का.... अब सुन हम दोनों लोग अंदर कमरे में चाचा - चाची के साथ ही लेटेंगे,........ और जब ये दोनों सो जाएंगे, तो मैं तुझे इशारा कर दूंगा, फिर दोनों को रात में ही गला घोंटकर मार देंगे, और  फिर सारा माल और गाड़ी लेकर हम उड़न छू हो जाएंगे ।

हाँ शाबाश.........ठीक है।  

इतने में एक आवाज आती है, गुडडू बेटा.......... खाना तैयार है, आ जाओ तुम  लोग ।
जी चाची आया.....चल बे  खाना खा लेते हैं।    

सुधा..... सुनो खाने के बाद इन दोनों का बिस्तर बाहर बरामदे में लगा देना, ये दोनों वही सो जायेंगे.......चाचा जी ने गुस्से से कहा............  

पर, जी वहां तो बहुत ठण्ड लगेगी.................  
चुप रहो तुम..... मैंने जो कहा वही करो बस.... चाचा जी ने चाची को चुप कराते हुए कहा।

चाची बड़ बड़ाते...... हुई बाहर चली गयी, और दोनों का बिस्तर बहार बरामदे में लगा दिया, अब गुड्डू और मंटू एक दूसरे को बस  देखते ही रह गए..........  

आओ बेटा गुड्डू आओ.......अपने  चाचा जी की बात का बुरा मत मानना, तुम तो इनको जानते ही हो, एकदम सनकी हैं ये.........सनकी..................

आओ तुम दोनों यहीं बरामदे में सो जाओ, मैंने मोटा गद्दा लगा दिया है....... और रजाई भी मोटी वाली है, बिलकुल भी ठण्ड नहीं लगेगी मेरे बच्चो को.......चाची ने पुचकारते हुए कहा ....

जी चाची आप जाओ, आप भी सो जाओ, हम लोग यहीं सो जायेंगे, कोई दिक्कत नहीं है, गुड्डू ने कहा ।

ठीक है, बेटा इतना कहकर चाची अंदर कमरे में चली जाती हैं।

अबे गुडडू................ अपना तो पूरा प्लान ही बिगड़ गया बे.......... ।
कोई बात नही मेरे दोस्त, मेरे पास प्लान बी है।

अच्छा वो क्या है ?  मंटू ने आश्चर्य से पूछा ..........

वो सब तुझे सुबह पता चल जाएगा............ चल अब सो जा वैसे भी बहुत देर हो चुकी है।  

अबे गुडडू एक बात तो  बता,  तुझे इस सनकी बुड्ढे के घर नौकरी मिली कैसे ?

अबे ये बुड्ढा जितना सनकी है,  उतना ही दयालु भी है ।

ये बात तब की है, जब मेरे पड़ोसी ने मुझे उसके घर में चोरी करते हुए देख लिया था, और वो मुझे पकड़ कर मेरे घर मम्मी-पापा के पास मेरी शिकायत करने लेकर  जा रहा था । मैंने उसके बहुत हाथ - पैर जोड़े , अंकल रहने दीजिये, माफ़ कर दीजिये, इस बार आगे से ऐसा नहीं होगा। मेरे मम्मी पापा को मत बताइये पर उसने मेरी एक न सुनी।  




तभी रास्ते में ही मैंने उसे अपने धारदार चाकू से घायल कर दिया ,  और उसके बाद पुलिस ने मुझे बाल सुधार गृह भेज दिया था ।

ये बुड्ढा उसी बाल सुधार गृह का डॉक्टर था ।
इसको मुझ पर दया आ गयी, और मेरी सज़ा खत्म होते ही, ये मुझे अपने घर ले आया ।

मेेरे घरवालो के लिए तो मैं उसी दिन मर गया था, जिस दिन मुझे पुलिस पकड़ कर ले गयी थी ।

इसलिए मैं भी इसके साथ यहाँ चला आया ।

यहाँ पर आकर मैंने ड्राइविंग सीख ली, और इसका ड्राइवर बन गया।  इसने तो मुझे पढ़ाने - लिखाने की भी कोशिश की...... पर तू तो जानता है....... ये सब अपने बस का रोग नहीं।  

यहाँ पर मैं एकदम राजाओं  की तरह रहता हूँ।
सुबह - शाम दूध, और तीनों टाइम मस्त चाची के हाथ का बना बनाया खाना मिलता है ।

तेरे तो ठाठ हैं बेटा ठाठ............... मंटू बोला ।

चल अब सो जा, सुबह जल्दी उठना है, गुडडू बोला ।

दूध वाला........... दूध ले लो.............. दूध वाला........... अपने साईकल की घण्टी बजाते हुए निकलता है।

दूध वाले की आवाज़ सुनकर चाची की नींद खुल जाती है।

उठते ही घड़ी की ओर देख कर चाची बोली, हे ईश्वर सुबह के सात बज गए, जाड़े में तो समय का पता ही नहीं चलता ।

चाची उठ कर किचन की तरफ जाती है,  और चाय बनाने के लिए बर्तन में पानी डालती हैं।
और अपने और चाचा जी  के पीने के लिए लोटे में पानी निकालती हैं।

इतने में चाचा की आवाज आती है, सुधा.............. आकर देखो ये दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा है ?

चाची दरवाज़े के पास आकर आवाज लगाती है,  गुडडू बेटा..... दरवाजा खोलो......... शायद जाम हो गया है ।
गुडडू बेटा .................गुडडू बेटा .................

लेकिन बाहर से गुडडू का कोई जवाब नहीं आता है।

चाचा घर के सभी दरवाज़े चेक करते है, लेकिन कोई भी दरवाजा नहीं खुलता है।

सभी दरवाज़े बाहर से बंद होते हैं।  

इतने में सुधा वापस किचन में पीने के लिए पानी लेने जाती हैं..... और देखती है...... कि पानी वाला लोटा और चाय वाला बर्तन किनारे किनारे से काला नीला हो चुका है।

अजी.............. सुनते हो.......... यहाँ आइये जल्दी...........

चाचा ने बर्तनों को देखा..... और उन्हें सब समझ मे आ गया ।
उन्होंने बिना देर किए पुलिस को फ़ोन कर दिया ।

गुड्डु और मंटू पानी की टंकी में ज़हर घोल कर....... और चाचा की स्विफ्ट डिजायर लेकर फरार हो गए ।

पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज़ कर ली है,  और उन लोगो की तलाश ज़ारी हैं।  


आजकल किस पर भरोसा किया जाय और किस पर नहीं कुछ समझ नहीं आता।  

कौन विश्वासपात्र हैं, और कौन नहीं 


Saturday, June 22, 2019

बैंक कर्मचारी और उनकी सुरक्षा




दोस्तों हम सभी लोग , बैंक कर्मचारी और उनके द्वारा  किये जाने वाले कार्यों  से भली प्रकार परिचित हैं।
ये वही लोग हैं, जिन्होंने देश के सबसे बड़े स्वच्छ भारत अभियान अर्थात नोटबन्दी में बिना रुके, बिना थके अर्थव्यवस्था की सफाई में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया था ।

ये लोग सफाई हेतु सुबह 9 बजे आ जाते थे और रात के 2 बजे तक लगातार काम करते रहते थे ।

लेकिन ये सब बाते  हम लोग भूल चुके हैं, क्योंकि ये सब  बातें  पुरानी हो चुकी हैं।

आज बैंक शाखा में प्रवेश करने वाला हर दूसरा ग्राहक यही कहता है, कि  भाई आप लोग की नौकरी सबसे अच्छी है, मस्त A.C. में बैठे रहतें हैं, दिन भर और हर रविववार छुट्टी, मज़े हैं भाई आप लोग के तो।  

ख़ैर उन्हें कौन समझाए A C में बैठकर गोली खाने से अच्छा है, धूप में सुरक्षित खड़े रहना ।

दोस्तों बैंक  कर्मचारियों के साथ गाली गलौज, हाथापाई, ये सब तो आम बात है, लेकिन बैंक कर्मचारियों की हत्या की बढ़ती हुई घटनाएं एक संकट का विषय बन चुकी  हैं।  

अभी हाल ही में विजया बैंक के एक अधिकारी की दो बन्दूक धारियों ने गोली मार कर हत्या कर दी।  

दो लोग हेलमेट पहनकर और हाथ में रिवॉल्वर लेकर शाखा में प्रवेश करते हैं, और अधिकारी की हत्या करके आराम से भाग जाते हैं।  



बैंक में हेलमेट पहनकर या मुँह बाँध कर प्रवेश करना  निषेध है, लेकिन फिर भी लोग ऐसा करते हैं, और अगर कोई बैंक कर्मचारी उन्हें टोक दे तो लड़ने लगते हैं।

 बैंक शाखा में गार्ड केवल सुबह १० से शाम 5  बजे तक ही रहते हैं यानी कैश के खुलने से लेकर कैश  के बंद होने के समय तक,  जबकि शाखा तो 8  बजे तक खुली रहती हैं।  

क्या बैंक शाखा में गार्ड केवल कैश की सुरक्षा हेतु ही नियुक्त किये गए हैं ? क्या कर्मचारी की जान की कोई कीमत नहीं है ?

क्या बैंक कर्मचारी की सुरक्षा हेतु कोई कानून नहीं हैं ?

क्या ये सवाल नहीं उठने चाहिए ?

देश में जब भी कोई आपदा आती हैं, तो बैंक कर्मचारियों के एक-दो दिन का वेतन काट लिया जाता हैं और उस आपदा से निपटने के लिए प्रयोग किया जाता हैं।  

आज बैंक कर्मचारियों पर आपदा आयी हैं, क्या किसी विभाग ने उस दुखी परिवार के लिए अपने एक दिन का वेतन दान किया हैं ?

ये इस तरह की कोई पहली घटना नहीं है, आये दिन इस प्रकार की घटनाएं घटित  होती रहती हैं, लेकिन आम आदमी की नज़र में नहीं आती, क्योंकि कोई न्यूज़ चैनल इस प्रकार की  घटनाओ को प्रसारित नहीं करता  है, और न ही कोई अखबार इसे छापता हैं , अगर कोई अखबार छापता भी है, तो किसी ऐसे कोने में जहाँ आसानी से आपकी नज़र भी नहीं जाएगी।

बैंक यूनियने भी इस तरह की घटनाओ का कोई विरोध करती नज़र नहीं आती हैं।  कारण कोई भी हो लेकिन बैंक कर्मचारियों की इस प्रकार हो रही ये हत्याएं असहनीय हैं।

अभी हाल ही में पश्चिम बंगाल में कुछ जूनियर डॉक्टर्स के साथ हुई झड़प का क्या परिणाम हुआ, उससे पूरा देश  भली प्रकार परिचित हैं।  

क्या ये हमारी बैंक यूनियनों का कर्तव्य नहीं, की वो एकजुट होकर इस घटना का विरोध करें ?

इस प्रकार बैंक  कर्मचारियों की हो रही ये हत्याएं असहनीय हैं, और सभी को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए, और कठोर से कठोर कदम उठाने चाहिए।  


Sunday, January 13, 2019

रोज़गार और शासन



भारतवर्ष के उत्तरप्रदेश राज्य में एक छोटा सा गाँव है - डिण्डौली ।

हरे भरे खेत खलिहानों और बाग बगीचों से घिरे हुए इस सुन्दर से गाँव में दस से बारह घर ही हैं, और उनमें से ज्यादातर परिवार खेती बाड़ी करके ही अपना जीवन यापन करते हैं। और कुछ... एक गिने चुने लोग भी हैं, जो धन और धान्य दोनों से सम्पन्न हैं, उनमें से एक हैं, गाँव के प्रधान जी "श्री राम बहल" जी ।

राम बहल जी का सरकार में कई बड़े - बड़े मंत्रियों के साथ रोज़ का उठना बैठना है । बड़े ही रसूख वाले व्यक्ति हैं, प्रधान जी । 

लेकिन फिर भी वे सादा जीवन उच्च विचार वाली विचारधारा को मानते हैं। और सभी ग्रामवासियों की हर सम्भव मदद करने की कोशिश में लगे रहते हैं । 

इसी गाँव में अजीत मिश्रा उर्फ अज्जू भी अपनी धर्मपत्नी कामिनी मिश्रा के साथ रहते हैं। मिश्रा जी अपनी पत्नी को प्यार से कम्मो कह कर बुलाते हैं।

गाँव के एक छोर पर ही उनका छोटा सा मिट्टी की चमकदार दीवारों और सरपत के  छप्पर से बना घर है। घर के सामने ही उनका दो बीघा खेत है, जो मिश्रा जी को अत्यंत प्रिय है । ये खेत ही उनकी जीविका का एकमात्र साधन है, जिसमें काम करके मिश्रा जी किसी तरह अपना और अपने परिवार का ससम्मान भरण पोषण करते हैं।

मिश्रा जी का एक बेटा है विनय, जो कि बी0 ए0 की पढ़ाई पूरी करने के बाद, जी - जान से सरकारी दामाद बनने की कोशिश में लगा है।

और एक बेटी है किरन जो कि इंटर की पढ़ाई करती है, और घर के सभी कार्यों में अपनी माँ का हाथ बटाती है।

किरन एक निहायत ही खूबसूरत, श्याम रंग वाली लड़की है। जिसकी शादी को लेकर पूरा मिश्रा परिवार दिन रात चिंता में डूबा रहता है।


और उनकी इस चिंता को केवल बिन्नू अर्थात विनय ही सरकारी दामाद बनकर दूर कर सकता है। 

क्योंकि किरन के लिए जो लड़का देखा गया है, वो शहर के किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी है, और लड़के वालों ने दहेज में चार पहिया वाहन की मांग की है।

अब मिश्रा जी के पास इतने पैसे तो हैं नहीं कि, गाड़ी देकर बिटिया रानी को विदा कर दें, इसलिए केवल सगाई कर के छोड़ दिया है, ताकि इतना बढ़िया रिश्ता कहीं हाथ से निकल न जाये  ।


अब पूरे परिवार को बस बिन्नू से ही उम्मीदें हैं, कि जैसे ही बिन्नू को सरकारी नौकरी मिले वैसे ही बिटिया के हाथ पीले कर दिए जाएं ।।

पर पिछले चार साल से विनय बाबू लगातार सरकारी नौकरी के पीछे भाग रहे हैं, पर नौकरी है... कि हाथ ही नहीं आती ।

चार साल में ऐसी कोई परीक्षा नहीं हुई होगी, जो बिन्नू भैया ने न दी हो, पर निराशा ही हाथ लगी ।

कभी कोई परीक्षा नकल के कारण निरस्त हो गयी, तो किसी के लिए कोई सुप्रीम कोर्ट चला गया, किसी का तो  परिणाम ही नहीं आया और जिसका परिणाम भी आया, उसमे बिन्नू भैया का नाम नहीं आया ।
आवेदन फॉर्म के पैसे बेकार हो गए वो अलग ।


इधर किरन के ससुराल वाले भी अज्जू पर किरन की शादी जल्द से जल्द करने के लिए दबाव बनाने लगे हैं, कहते हैं- चार साल हो गए सगाई को अगर शादी न करनी हो तो साफ साफ बता दो रिश्तों की कमी नहीं है......   मेरे बेटे के लिए ।

अज्जू ने किसी तरह कह सुन कर बड़ी मुश्किल से किरन के ससुराल वालों से एक साल का और समय माँगा है, अब अज्जू को एक ही रास्ता नज़र आता है, कि वो अपना खेत बेचकर अपनी बिटिया के हाथ पीले कर दे ।


एक दिन विनय की मुलाकात उसके मित्र महेश से होती है।  हाल चाल होने के बाद महेश कहता है, यार विनय सुना है, कि... इस बार लेखपाल वाली सीधी भर्ती में दक्षिणा चल रही है।

भर्ती विभाग के मंत्री श्री "रामपाल यादव" जी ने कहा है कि दक्षिणा दो, और नौकरी ले जाओ। और फिर तूने भी तो आवेदन किया है।

देख ले भाई कुछ ले दे के हो जाये तेरा.......... तो अच्छा है।
अच्छा बिन्नू अब मैं चलता हूँ बाय । इतना कहकर महेश चला जाता है । 

इतना सुनकर बिन्नू दौड़ता हुआ, अपने घर की ओर भागा , मानो जैसे उसे एक नई उम्मीद मिल गयी हो । अब उसे अपना सपना पूरा होता हुआ दिख रहा था । 

घर पहुँच कर बिन्नू पूरी बात अपने पिता को बताता है। और झट से अपने पिता को साथ में लेकर  प्रधान जी के पास जाता  है ।


राम बहल जी दोनों को बताते है कि, आप लोगों ने  जो भी सुना है, वो एकदम सही है। 

इस बार आठ लाख रुपये दक्षिणा लग रही है, दक्षिणा लाओ और आपकी लेखपाल पद की सीट पक्की ।

चुनाव सर पर है, किसी भी समय चुनाव की घोषणा हो सकती है,  इसलिए प्रत्येक सीट का दाम मंत्री जी ने फिक्स रखा  है। आजकल चुनाव में बहुत रुपया खर्च होने लगा है। सारा खेल अब पैसे का ही है । अरे भाई......  अब तो वोटर भी खरीदना पड़ता है । 

पूरी भर्ती प्रक्रिया चुनाव के पहले ही सम्पन्न कर दी जाएगी,  इसलिए पूरा खेल एक से दो महीने में ही खत्म हो जाएगा ।


अज्जू भइया आप तो  बस पैसा ले आओ, बाकी का सारा काम मुझ पर छोड़ दो, आखिर बिन्नू मेरा भी तो लड़का है।

इतना सुनकर दोनों प्रधान जी से विदा लेकर घर वापस आ जाते हैं।

घर आकर अज्जू बहुत ही दबे स्वर में, कम्मो से कहता है कि आखिर आठ लाख रुपये कहाँ से लाऊं  ? 
खुद  को  बहुत  ही  असहाय  महसूस  कर  रहा हूँ मैं ।
खेत बेचने के सिवाय मेरे पास  दूसरा कोई रास्ता नहीं है, लेकिन फिर किरन की भी तो शादी करनी है, तब क्या करूँगा ??

इतना कहते ही अज्जू की आंखे उसका साथ छोड़ देती है और अश्रु धारा तीव्र वेग के साथ बहने लगती है।


फिर कम्मो उसे समझाती है, कि आप खेत बेचकर प्रधान जी को पैसे दे दीजिए, जिससे अपने बिन्नू को नौकरी मिल जाएगी, और फिर हमारा बिन्नू अपनी बहन किरन की शादी भी धूम धाम से करा देगा ।  हम लोग किसी तरह 
किरन के ससुराल वालों से कुछ वक्त और मांग लेंगे ।

हमारा बिन्नू हमारे बुढ़ापे की लाठी है, वो नौकरी पाने के बाद सब ठीक कर देगा ।

आप चिंता मत कीजिये , मेरा विश्वास कीजिये आप ।

कम्मो की बात सुनकर अज्जू मान जाता है।


और अपने एकमात्र जीवकोपार्जन के ज़रिए, अपने प्रिय खेत को दस लाख रुपये  में बेच कर प्रधान जी को पूरे आठ लाख रुपये दे देता है।

रुपये पाकर प्रधान जी कहते है...  अरे अज्जू भइया अब काहे मुँह लटकाए खड़े हो, अरे...... अब तो  खुश हो जाओ अब आपका बिन्नू समझो लेखपाल बन गया ।

पूरा घर बिन्नू को लेखपाल मान कर बहुत खुश होता है । सभी के चेहरे पर संतुष्टि का भाव है, कि आख़िर हमारा बिन्नू सरकारी दामाद बन गया ।

लेकिन घर के एक कोने में खटिया पर बैठे अज्जू भइया के चेहरे को पढ़ पाना थोड़ा मुश्किल है, जहाँ एक तरफ उनको ये संतुष्टि है, कि आज वो अपने बेटे के लिए कुछ कर पाए, वही दूसरी तरफ उनको  इस बात का दुःख भी है, कि वो अपने पुरखों का खेत नहीं बचा सके, जो उन्हे  उनकी यादों से जोड़ता था ।

ख़ैर इसी तरह पूरे चार महीने बीत गए और आज बिन्नू भैया को लखनऊ  जॉइनिंग करने जाना है।

आज पूरा गाँव बिन्नू को विदाई देने के लिए एकत्र हुआ है।


आज पूरा घर बहुत खुश है, किरन अपने भाई को बड़ी  ही आशा वाली नजरों से देखती है, और जाने के पहले उसकी आरती उतारती है, और टीका करती है, और कम्मो अपने बेटे को दही चीनी खिलाती है, और फिर बिन्नू माता पिता का आशीर्वाद लेकर लखनऊ के लिए निकल पड़ता है।

लखनऊ पहुँच कर बिन्नू देखता है, कि कार्यालय के सामने बहुत भीड़ लगी हुई है। लोग ज़ोर - ज़ोर से  मुर्दाबाद - मुर्दाबाद और हाय - हाय के नारे लगा रहे हैं।

भारी मात्रा में पुलिस बल तैनात है, भीड़ को क़ाबू कर पाना मुश्किल हो रहा है।


बिन्नू समझ नही पाता है कि यहां क्या हो रहा है ??

इसलिए वह बगल में खड़े एक व्यक्ति से पूछता है, कि भाई साहब यहां क्या हो रहा है ??

वह व्यक्ति जो कि पहले से रो रहा होता है, बिन्नू को बताता है, कि भाई साहब हम  सब लोग यहाँ लेखपाल पद की जॉइनिंग करने के लिए आये हैं, लेकिन पिछली सरकार में हुई इस सीधी भर्ती को नई सरकार ने असंवैधानिक तरीके से हुई भर्ती बताकर निरस्त कर दिया है।

अब यहाँ किसी को नौकरी नहीं मिलेगी.....किसी को नहीं  इसीलिए  हम सब यहाँ विरोध प्रदर्शन कर रहें हैं।  
लेकिन अब क्या होगा..... अब तो जो होना था....., हो गया !


इतना सुनते ही बिन्नू के पैरों के नीचे से मानो ज़मीन खिसक गई हो ।

उसकी आँखों के सामने सब कुछ काला- काला हो गया था, उसको दिखाई देना बंद हो गया था ।
वह अपने मुँह से चाह कर भी  कुछ  नहीं बोल पा रहा था ।
उसके दिल की धड़कनें तेज़ हो गयी थी । जो पास में खड़े किसी भी व्यक्ति को आसानी से  सुनाई दे जाती, और उसके हाथ - पैर कांप रहे थे । पूरा शरीर पसीने से भीग गया था और मुंह जलते हुए सूरज की भांति लाल हो गया था । 
वो बस चलता चला जा रहा था......., उसके दिमाग में उसकी बहन किरन की शक्ल और उसकी शादी की चिंता, उसकी माँ की उम्मीदें, पिता का जान से प्यारा खेत और अपनी ज़िम्मेदारिया किसी फिल्म की तरह लगातार घूम रहीं थीं ।

उसका दिमाग तेज़  ज्वालामुखी की तरह फटा जा रहा था ।

अब उसे उसके सामने कोई और रास्ता नज़र नहीं आ रहा था । क्या करूँ ! कहाँ जाऊ !



वह अपने जीवन से हार गया था ।  इसलिए, अपने दिमाग को शांत करने के लिए वह गोमती नदी में कूद गया ।

और इस संसार और अपनी जिम्मेदारियों से हमेशा - हमेशा के लिए मुक्त हो गया ।


दक्षिणा दे कर नौकरी पाना और जीवन से हार जाना दोनों ही कायरता है । 






Sunday, January 6, 2019

मैं और मेरा टिफिन


दोस्तों टिफ़िन से तो आप सभी लोग भली - भांति परिचित ही हैं।
टिफ़िन, लंच बॉक्स, डब्बा, सब वही तो है, जिसमे हम सभी लोग खाना ले जाते हैं।
दोस्तों, ये डब्बा ना.... बड़े ही काम की चीज़ है।

आपको दुनिया में कहीं भी जाना हो, चाहे सफ़र में, चाहे ऑफिस या फिर स्कूल, डब्बा हर जगह आपका साथ निभाता है।

दोस्तों मेरा और मेरे टिफ़िन का रिश्ता स्कूल के दिनों से शुरू हुआ, जो आज तक उसी तरह क़ायम है, जैसा कि स्कूल के दिनों में था ।

स्कूल के दिनों में मम्मी रोज़ सुबह अच्छा - अच्छा खाना बना कर टिफ़िन में देती थी, और स्कूल में हम सारे दोस्त एक साथ बैठ कर खाते थे ।



जिसको जो अच्छा लगता था, हम एक दूसरे के टिफ़िन से निकाल कर खा लेते थे ।

हम रोज़ स्कूल में ही तय कर लेते थे, कि कल सबको अपने - अपने घर से क्या लेकर आना है। और अगले दिन सब वही लेकर आते थे, और मज़े से खाते थे ।

आज भी, जबकि मैं नौकरी करने लगा हूँ, लेकिन मेरा और मेरे टिफ़िन का रिश्ता  वैसा ही है, जैसा कि स्कूल के दिनों में था ।

आज भी मैं सुबह तैयार होता हूँ, और टिफ़िन लेकर ही ऑफिस जाता हूँ, और वहाँ सभी सहकर्मियों के साथ बैठ कर मज़े से खाना खाता हूँ। 

सहकर्मियों के साथ बैठ कर खाने से जहाँ एक तरफ खाने का स्वाद कई गुना बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ एक दूसरे को समझने का उनके साथ समय बिताने का भी अवसर मिल जाता है, जिससे आपसी प्रेम सम्बंध और भी प्रगाढ़ होते हैं।

एक दूसरे के टिफ़िन से छीन कर खाने का मज़ा तो बस साथ में बैठ कर खाने से ही आता है।


लेकिन दोस्तों कुछ लोगों का नज़रिया टिफ़िन को लेकर बहुत अच्छा नहीं होता है !

शायद वो टिफ़िन लेकर जाने में खुद का अपमान समझते हैं।

या फिर वो ये सोचते हैं, कि कौन ? इस डब्बे को इतनी दूर लाद कर ले जाए !

और कुछ लोग तो इतने चटोरे होते हैं कि, वो सोचते है, टिफ़िन लाद कर ले जाने से अच्छा है, कि बाहर जाकर कुछ अच्छा सा तड़कता भड़कता खाएंगे।
और इस चक्कर में वो घर का स्वादिष्ट खाना न ले जाकर, बाहर का धूल से तड़कता और धूप में भड़कता खाना - खाना पसन्द करते हैं।

और बहुत से लोग तो बस इसलिए टिफ़िन लेकर नहीं आते, कि उनके साथी मित्र क्या कहेंगे ?  
कि ये अभी भी छोटा बच्चा है ! ये अभी भी टिफ़िन लेकर आता है... कितनी..... भूख लगती है इसको ?

अरे भाई कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना.......

तो ....दोस्तों मेरी मानिए तो ये सब बेकार की बातें हैं । इनको भूल कर आगे बढ़िए, और आपका अपना मन है, आपकी अपनी भूख है, और आपका अपना खाना है, जितना मन आए दबा के खाइये ।


और वैसे भी हमें घर का पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन ही खाना चाहिए, और ले भी जाना चाहिए ।
टिफ़िन का अपना अलग ही मज़ा है। और दोस्तों के साथ बैठ कर खाने से ये मज़ा और भी बढ़ जाता है।


कमेंट बॉक्स में कमेंट करके अपनी राय अवश्य दे । 
यही मेरे लिए मेरा पुरस्कार है।
धन्यवाद ।।

Friday, August 24, 2018

अब बैंको में बनेंगे आधार कार्ड



दोस्तों आधार कार्ड से तो आप सभी लोग भली - भाँति परिचित हैं।
आधार आज के समय में प्रत्येक भारतीय के जीवन भर की पहचान और उसके निवास का प्रमाण है।

लेकिन यह किसी भी व्यक्ति की नागरिकता का प्रमाण नहीं है।

आधार (UID - Unique Identification Number) 12 अंको की एक विशिष्ट संख्या है, जिसे प्रत्येक व्यक्ति के फिंगर प्रिंट, रेटिना स्कैन व उसकी फोटो लेकर उसकी बॉयोमेट्रिक और डेमोग्राफिक परिस्थितियों के अनुसार अलॉट किया जाता है।

आधार कार्ड भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI- Unique Identification Authority of India) द्वारा निर्गत किया जाता है।

दोस्तों भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण एक सांविधानिक प्राधिकरण है, जिसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा आधार अधिनियम 2016 के प्रावधानों के अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत 12 जुलाई 2016 को की गई थी ।

जिसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
तथा इसके आठ क्षेत्रीय कार्यालय हैं, जो बेंगलुरु, चंडीगढ़, दिल्ली, गुवाहाटी, हैदराबाद, लखनऊ, मुम्बई तथा रांची में स्थित है।

सभी भारतीयों के डाटा की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इसके दो डेटा सेन्टर बनाए गए हैं, जिनमें से पहला हेब्बल, बेंगलुरु कर्नाटक में तथा दूसरा मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा में स्थित है।



दोस्तों सबसे पहला आधार कार्ड महाराष्ट्र के निवासी नंदूरबार को 29 सितम्बर 2010 को जारी किया गया था ।

शुरुआत में आम आदमी का अधिकार इसकी टैग लाइन थी । जिसे आम आदमी पार्टी के गठन के बाद बदलकर मेरा आधार मेरी पहचान कर दिया गया ।

दोस्तों आज अगर आपको बैंक में खाता खोलना हो, गैस सब्सिडी चाहिए हो, पेंशन चाहिए हो, सिम खरीदना हो, रिजर्वेशन में छूट चाहिए हो या फिर आयकर रिटर्न्स फ़ाइल करना हो, हर छोटे से छोटे और बड़े से बड़े काम को करने के लिए आपको आधार कार्ड की आवश्यकता पड़ती है।

लेकिन जितना ही ये महत्वपूर्ण है,इसको बनवाने में लोगो को उतनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। बहुत से लोगों को तो पता ही नहीं होता है, कि उनके आस पास आधार कार्ड कहाँ पर बनता है।

लेकिन अब चिंता की कोई बात नहीं, क्योंकि अब आधार कार्ड बनेगा आपके नज़दीकी बैंकों और डाकघरों में।



जी हाँ दोस्तो, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) नें सभी बैंको को उनकी कुल शाखाओं की 10% शाखाओं में आधार एनरॉलमेंट सेंटर स्थापित करने की सलाह दी है।
और लगभग सभी बैंको में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है।

ये सभी सेवाएं बैंकिंग समयानुसार सुबह 10 से शाम 4 बजे तक न्यूनतम शुल्क के साथ सभी लोगों को प्रदान की जाएंगी ।

जैसे :- नया आधार बनवाने के लिए - निशुल्क
बॉयोमेट्रिक अपडेट कराने के लिए - निशुल्क
अन्य बायोमेट्रिक अपडेशन - 25 से 30 रुपये
डेमोग्राफिक अपडेशन - 25 से 30 रुपये
(E-kyc) के माध्यम से आधार ढूँढने के लिए - 20 से 24 रुपये
आधार प्रिंट आउट लेने के लिए - 10 से 12 रुपये आदि ।



तो अब देर किस बात की अब आप अपने नजदीकी बैंक शाखा में जाकर आधार एनरॉलमेंट शाखाओं की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

चेतावनी :- अपने आधार कार्ड या बैंक एकाउंट की जानकारी कभी भी किसी भी  व्यक्ति को न दे, और ना ही किसी को फ़ोन पर बताये ।।


दोस्तों उम्मीद है, यह जानकारी आप लोगों को पसंद आयी होगी ।
किसी भी प्रकार के सुझाव या शिकायत के लिए नींचे कमेन्ट बॉक्स में कमेंट करना न भूलें ।।

धन्यवाद ।।

Sunday, August 19, 2018

बैंको में पांच दिवसीय कार्यप्रणाली : Five days working in banks




दोस्तों पिछले कई वर्षों से बैंक कर्मचारी लगातार बैंको में पांच दिवसीय कार्यप्रणाली की मांग कर रहे हैं, लेकिन अभी तक उनकी ये मांग पूरी नहीं हो पाई है।
ख़ैर देखिए उनकी मांगें कब पूरी होती हैं, लेकिन आज मैं आपको पांच दिवसीय कार्यप्रणाली के विषय में कुछ बताना चाहता हूँ ।


दोस्तों पांच दिवसीय कार्यप्रणाली को लागू करने का पूरा श्रेय फोर्ड कंपनी के जनक श्री हेनरी फोर्ड को जाता है।
एक बार फोर्ड कंपनी के सभी अच्छे कर्मचारी काम करने के बढ़ते समय के कारण एक एक करके नौकरी छोड़कर जाने लगे ।




इस बात से हेनरी फोर्ड बहुत परेशान हो गए, और उन्होंने सबके नौकरी छोड़ने के कारण का पता लगाया । कारण जानने के बाद उन्होंने, परिणामस्वरूप सभी कर्मचारियों का वेतन दोगुना कर दिया, और सप्ताह में पांच दिवसीय और आठ घंटे प्रति दिन की कार्यप्रणाली लागू कर दी । जिसके बाद उनके सभी कर्मचारी वापस आ गए, और उनकी कंपनी की उत्पादन क्षमता भी बढ़ गयी ।




यूनाइटेड स्टेट्स के राष्ट्रपति श्री हर्बर्ट हूवर ने देश में आई मंदी के प्रभाव को कम करने के लिए अपने कर्मचारियों को नौकरी से निकालने के बजाए उनके कार्य करने के घंटो में कमी कर दी ।

दोस्तों विकसित राष्ट्रों में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन्होंने कार्य करने के समय में कमी करके विकास किया है।
हमारा सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी देश चीन, हंगरी, अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि, जैसे विकसित राष्ट्र भी पांच दिवसीय कार्यप्रणाली के आधार पर ही कार्य करते हैं।

दोस्तों पांच दिवसीय कार्यप्रणाली लागू होने से बहुत सारे लाभ भी हैं, जैसे : कम ईंधन लागत, व यातायात में कमी, ये पर्यावरण के भी अनुकूल है।
उत्पादकता में वृद्धि जो कि बैंक और राष्ट्र दोनों के लिए लाभकारी है।

कर्मचारी की अनुपस्थिति में कमी, मजबूत मनोबल और बेहतर नौकरी करने की संतुष्टि ।

कर्मचारी की ऊर्जा लागत में कमी, जीवन स्तर और स्वास्थ्य स्तर में सुधार ।
बेहतर कार्य और निजी जीवन के मध्य समन्वय आदि ।




आज बैंको में डिजिटलीकरण इतना अधिक हो चुका है, कि ग्राहक बिना शाखा गए ही अपने सारे कार्य (24 *7) किसी भी स्थान से आसानी से कर सकते हैं ।
जैसे कि एटीएम मशीन,कैश डिपाजिट मशीन, इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, चेक डिपाजिट मशीन, यहां तक कि ग्राहक घर बैठ कर ही अपना बचत खाता, डिपॉजिट खाता आदि भी खोल सकते हैं।

दोस्तो पांच दिवसीय कार्यप्रणाली लागू हो जाने से बैंक अपनी शाखाओं का अधिक  विस्तार न करके बल्कि अपनी ई-लॉबी के विस्तार पर अधिक ध्यान देंगे।
जो कि बैंको के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि एक शाखा को खोलने में जितना धन खर्च होता है, उतने धन में बैंक तीन ई-लॉबी खोल सकते हैं।





दोस्तों ई-लॉबी एक ऐसा स्थान हैं जहां आपको एटीएम मशीन, पास बुक प्रिन्टिंग मशीन, कैश डिपाजिट मशीन, चेक क्लीयरिंग मशीन आदि की सुविधाएं प्राप्त होती हैं।

किन्तु अब तक ये बैंको में लागू क्यों नही हुआ ??

क्योंकि सरकार ये सोचती है कि, इस प्रणाली से नौकरीपेशा वर्ग और उद्योग जगत को बहुत सी कठिनाइयां होंगी ।और फिर सरकार की बहुत सी योजनाएं भी हैं,जो केवल बैंको के माध्यम से ही संचालित होती हैं।

तो दोस्तों इन बेमानी बातों का उत्तर हम ऊपर ही पढ़ चुके हैं कि,डिजिटलाइजेशन को बढ़ाकर हम इन सभी परेशानियों को दूर कर सकते हैं।


दोस्तों आप लोगों को ये ब्लॉग कैसा लगा कमेंट करके अवश्य बताइये ।


और इसे अधिक से अधिक शेयर कीजिये ताकि लोग इसके सकारात्मक पहलू को जान सके ।।



धन्यवाद ।।


Thursday, July 12, 2018

बाबू की पेंशन



दोस्तों, यह कहानी तब की है, जब हम लोग अपने पैतृक गाँव में निवास किया करते थे । मैं मेरा भाई, मम्मी, चाचा-चाची उनके बच्चे और मेरे बाबू । बाबू यानी कि, पिता जी के पिता जी उन्हें पूरा परिवार बाबू जी कह कर ही बुलाता था । मेरे बाबू पुलिस विभाग में दीवान हुआ करते थे। विभाग में सब लोग उन्हें दीवान साहब कह कर ही बुलाते थे। वो बहुत ही ईमानदार और साहसी दीवान थे।
एक बार मेरे बाबू और एक सिपाही हाथ में टॉर्च और कंधे पर बंदूक टांगकर, साईकल से ही गर्मियों की अंधेरी रात में गश्त के लिए निकल पड़े ।

और गश्त के दौरान ही उनका सामना कुछ डाकुओ से पड़ गया, सभी डाकुओं के मुँह कपड़े से बंधे हुए थे, और सब कंधे पर बंदूक टांगे, घोड़े पर सवार थे ।
वो सब उस इलाके के नामी गिरामी डाकू थे, और उस इलाके में उनका ही आतंक था, वो लोग लूट के ही, इरादे से कहीं जा रहे थे ।


जैसे ही डाकुओ ने बाबू और उनके साथी को गश्त लगाते देखा, उन लोगो ने तुरंत गोलीबारी प्रारम्भ कर दी । फिर क्या था बाबू और उनके साथी ने भी बड़ी बहादुरी के साथ उन सभी डाकुओं का सामना किया, और दोनों ने सात से आठ डाकुओ को वहीं मार गिराया ।

लेकिन इसी गोलीबारी के बीच एक गोली आकर मेरे बाबू के सीने में भी लग गयी और वो घायल हो गए ।
लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घायल होने के बावजूद भी उन्होंने लगातार डाकुओ का सामना किया, और अंत में बचे हुए डाकुओं को अपनी जान बचाकर वहाँ से भागना ही पड़ा ।

सारे डाकुओं के भाग जाने के बाद मेरे बाबू जी बेहोश हो गए और जब उनकी आँख खुली तो उन्होंने खुद को अस्तपाल में पाया और पास में उनकी धर्मपत्नी यानी हमारी अम्मा बैठी थी ।

इस हादसे से हमारी अम्मा सहम गयी थी, और उन्होंने बाबू से नौकरी छोड़ने को कह दिया । उसके बाद बाबू ने पेंशन ले ली और गाँव आ गए ।
धीरे धीरे सब सही हो गया था, और बाबू हमारे साथ गाँव में रहने लगे थे। हम बच्चे रोज़ रात को उनके पैर दबाते थे, और बदले में वो हमें रोज़ कोई न कोई कहानी सुनाते थे।

अब सभी लोगों को हर महीने बाबू की पेंशन का बेसब्री से इंतजार रहता था ।
और हम लोग भी पेंशन का बेसब्री से इंतजार करते थे। क्योंकि जब भी बाबू बैंक पेंशन लेने जाते थे, तो वहाँ से हम लोगो के लिए जलेबी और कंपट लेकर आते थे ।


उस जलेबी के लिए हम बच्चे लोग पूरे एक महीने बाबू की पेंशन के लिए इंतजार  करते थे । और जैसे ही बाबू पेंशन लेकर आते थे, हम बच्चे लोग बाबू आये जलेबी लाये, बाबू आये जलेबी लाये यही गाते चिल्लाते उनके पास दौड़कर आ जाते थे।



फिर वो जलेबी पूरे परिवार के सदस्यों में बाँटी जाती थी, और सबके हिस्से एक या दो छत्ता जलेबी आती थी। और दोस्तों तब वो जलेबी और कंपट दोनों ही बड़े स्वादिष्ट लगते थे।
आज मेरे बाबू इस दुनियां में नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें आज भी मेरे साथ हैं ।

दोस्तों मेरा मानना है, कि हम सबके जीवन मे ऐसी कोई न कोई छोटी - बड़ी, खट्टी - मीठी यादें अवश्य होती हैं, जिनको याद करके अक्सर हम अकेले ही हँसते - रोते हैं।

हमें अच्छी यादों को हमेशा याद रखना चाहिए, और बुरी यादों को भूल जाना चाहिए ।

अगर आपकी भी कोई अच्छी याद है तो हमें अवश्य बताएँ ।।






Wednesday, June 6, 2018

किसानी हड़ताल



दोस्तो, जब भी लोगों को अपनी बात सरकार से मनवानी होती है, तो वो नए- नए प्रकार के तरीको से सरकार के प्रति अपना विरोध प्रकट कर सरकार तक अपना संदेश भेजते हैं।
सही भी है, भारत एक लोकतांत्रिक देश है। और जब भी हमें लगे कि जाने अनजाने सरकारी नीतियों से हमारा अहित हो रहा है, तो हम विरोध करने के लिए स्वतंत्र भी हैं।
लेकिन हमारे विरोध करने के तरीके से किसी और का अहित न हो इस बारे में भी विचार करना आवश्यक है।
आजकल ऋण माफी एक बहुत बड़ा मुद्दा है।


अपना ऋण माफ करवाने के लिए हमारे किसान भाई सड़को पर उतर आते हैं, और सड़क पर ही दूध की नदियां बहा देते हैं।
आलू, प्याज, टमाटर आदि सब्ज़ियों को सड़कों पर फेंक देते हैं, और फिर उन सब्ज़ियों को अपने पैरों से रौद देते हैं। और सब्जियों को पैरों से रौंदते समय जय जवान जय किसान के नारे लगाते हैं।


मेरे विचार में विरोध करने का ये तरीका उचित नहीं है।

जो किसान दिन और रात में भेद न करते हुए अपना खून पसीना लगाकर फसल का उत्पादन करता है वो कभी भी अपनी फसल को पैरो से रौंदते हुए नहीं देख सकता ।

मुझे आज भी याद हैं, बचपन में मेरे पैरों के नीचे अगर कोई गेहूं का दाना भी आ जाता था, तो मेरी दादी मुझे बहुत डाँटती थी, और कहती थी उस दाने को माथे से लगाओ अर्थात उस अन्न के दाने का अपमान न करो उसके पैर छूकर माफी माँगो।

प्राचीन काल से ही हमारे देश में अन्न को देवता का स्थान दिया जाता है।

यहाँ तक कि राजा महाराजा भी खाने के समय खाने की थाली को आसन देते थे और खाने के पहले हाथ जोड़कर प्रार्थना करने के बाद ही भोजन ग्रहण करते थे।

लेकिन आज अन्न का ऐसा अपमान देखकर बहुत दुःख होता है।

आज जो लोग जय जवान जय किसान के नारे लगा रहे हैं ।

क्या वो इन नारों के महत्व को समझते हैं ??
क्या उन्हें यह पता भी है कि इस नारे को कब और किसने कहा था ??

शायद नहीं ।।
क्योंकि अगर वो समझते तो इस नारे का भी अपमान नहीं करते ।

दोस्तों जय जवान जय किसान का नारा हमारे देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान दिया था, और उस समय हमारा देश खाद्यान की भारी कमी से भी जूझ रहा था ।


शास्त्री जी के नारे से हमारी सेना और किसानों में गजब का जोश और उत्साह भर गया ।
और भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना की ईंट से ईंट बजा दी, और किसानों ने कठिन परिश्रम से भारत को खाद्यान में स्वावलंबी बना दिया ।
क्या आज हम अपने उस गौरवशाली इतिहास को भी भूल गए हैं ??
जो लोग आज सड़को पर उतर कर इस तरह से अन्न का अपमान कर रहे है निसंदेह वो लोग भारतीय किसान नहीं हैं।

वो बस किसान होने का छलावा कर रहे हैं। उन्हें इस बात की भी परवाह नही है, कि इस प्रकार अन्न बर्बाद करने से कितने लोगों को भूखा सोना पड़ेगा। 

सभी किसान भाइयों से मेरा निवेदन है, कि आप लोग हड़ताल का कोई और विकल्प तलाश कर लें, पर हड़ताल करने का ये तरीका सही नहीं है।

दोस्तों आप लोग भी इस प्रकार की हड़ताल पर अपने विचारों से मुझे अवगत कराइये ।।


धन्यवाद ।।

Saturday, December 9, 2017

वृद्धाश्रम : कल आज और कल



दोस्तों वृद्धाश्रम (old age home) का सन्धि विक्षेद है : वृद्ध + आश्रम यानी वृद्धों का आश्रम।
अर्थात एक ऐसा आश्रम या स्थान जहाँ पर वृद्धो को रखा जाता है, और उनकी देखभाल की जाती है। 
अगर हम चाहे तो ये भी कह सकते है कि वृद्धाश्रम बूढ़े माँ बाप का हॉस्टल (hostel) होता है।

बचपन में माँ बाप अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर  उनका भविष्य सँवारने की चाह में उन्हें  हॉस्टल भेजते हैं, लेकिन वही बच्चे जब पढ़ लिख कर बड़े हो जाते हैं,  तो वे अपने माँ बाप को उम्र के उस पड़ाव पर हॉस्टल यानी वृद्धाश्रम भेज देते हैं, जब उन्हें उन बच्चों की सबसे अधिक आवश्यकता होती है। 
वृद्धावस्था में माता पिता को अपने बच्चो के प्यार, साथ और सम्मान की अत्यधिक आवश्यकता होती है, किन्तु कुछ बच्चे इस बात को नहीं समझते हैं।
दोस्तों, जहाँ तक मुझे जानकारी है कि, पहले हमारे भारतवर्ष में वृद्धाश्रम नहीं हुआ करते थे। बल्कि  यहाँ पर श्रवण कुमार और भगवान श्री राम और लक्ष्मण जैसे सुपुत्र जन्म लिया करते थे।


ये उन्ही श्रवण कुमार का देश है जिन्होंने अपने अंधे माँ बाप की चार धाम घूमने की इच्छा को पूरा करने के लिए उन्हें अपने कंधे पर तराजूनुमा पालकी में बैठाकर पैदल ही चार धाम की यात्रा कराई थी।
ये उन्ही भगवान राम का देश है, जिन्होंने अपने पिता द्वारा दिये गए वचन को पूरा करने के लिए अपने जीवन के अनमोल चौदह वर्ष अपनी पत्नी माता सीता और भ्राता लक्ष्मण के साथ वन में बिता दिए थे।
ये वही देश हैं, जहाँ पर, "माता पिता के चरणों में ही स्वर्ग होता है", और "माता पिता साक्षात ईश्वर का स्वरूप हैं", जैसी कहावतें प्रचलित हैं।

प्रभु परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा को पूरा करने के लिए अपनी ही माता और भाइयों का सिर उनके धड़ से अलग कर दिया था। और बाद में पिता से ही वरदान स्वरूप उन्होंने सभी को जीवित भी करा लिया था। इसलिए उनको सबसे बड़ा पितृभक्त भी कहा जाता हैं।
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किन्तु, आजकल परिवार में तो जैसे संस्कार और बड़े छोटे का आदर व सम्मान समाप्त ही हो गया है।
बच्चे जल्दी से माता पिता के मांगने पर एक ग्लास पानी भी नही देते हैं, क्योंकि आज के समय में बच्चे अपने माता पिता को बोझ समझते हैं।
वे समझते हैं कि उनके माता पिता उनकी तरक्की में रुकावट हैं, क्योंकि वो उन्हें हर काम के लिए टोकते हैं, और उनकी तरक्की से जलते हैं।
अधिकतर बच्चे अपने माता पिता को अपने दोस्तों और अपने वरिष्ठ अधिकारियों से मिलाने में भी शरमाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि उनके  माता पिता उनकी बेइज्जती करा देंगे।
और तो और अगर पिता जी ने बच्चे को डांट भी  दिया, तो बच्चा उल्टा पिता जी को ही डाँटने लगता है, जैसे कि वो खुद ही अपने पिता का पिता हो।
कुछ बच्चे तो ज़रा-ज़रा सी बात में ही, अपने माता पिता को घर से भगाने लगते हैं। जैसे कि घर उन्होंने खुद ही खरीदा और बनवाया हो। 

और संस्कारों की सारी सीमाएं तो तब पार हो जाती हैं, जब अपने क्रोध में वो अपने माता पिता पर हाथ उठाने से भी पीछे नहीं हटते।
जब कोई मित्र उनसे पूछता है कि, क्या हुआ भाई ?  मूड ऑफ क्यों लग रहा है, तुम्हारा तो बड़े गर्व से बताते है, कुछ नहीं यार, बाप से ज़रा हाय हाय हो गयी थी, और उसी में दो हाथ मैने भी उनको लगा दिए, और बिना खाना खाए ऐसे ही चला आया घर से ।
अपने मित्रो से इस प्रकार खुद ही अपनी प्रसंशा करते हुए न तो उन्हें लज्जा आती है, और न ही अपने किये का पछ्तावा होता है।

प्रत्येक माता पिता अपनी संतान को अपनी पूरी सामर्थ्य लगाकर पाल पोस कर बड़ा करते हैं। अपनी संतान के लिए बड़े बड़े सपने सजाते हैं। दुनिया भर की सारी खुशियां अपने बच्चों को देते हैं। धूम धाम से उनका शादी विवाह भी कराते हैं। किन्तु वही संतान विवाह के बाद अपने माँ बाप के सारे बलिदानों को भूल जाता है।
और जब उसे माता पिता की सेवा करनी चाहिए तब वह उन्हें वृद्धाश्रम छोड़ आता है। कुछ दिन पहले बने सम्बन्ध के लिए वो अपने वर्षो के सम्बन्ध को ठुकरा देता है।
मजबूर माँ बाप अपने बच्चे के सामने रोते बिलखते हैं, बेटा हमें भी साथ में रहने दो, हम यहीं किसी कोने में पड़े रहेंगे, और बचपन से हमने ही तो आपको पाल पोस कर बड़ा किया हैं।
तो बेटा कहता हैं  : पाल पोश कर बड़ा किया है, तो कोई अहसान नहीं किया, सभी माँ बाप करते हैं, अपने बच्चो के लिए, और ये तो आपका कर्त्तव्य हैं।

ये बात सही हैं कि ये उनका कर्तव्य है और उन्होंने इसका भली भांति निर्वाह भी किया।

किन्तु आपने क्या किया ?? 
क्या आपने अपने कर्तव्य का निर्वाह किया ??

आप तो उन्हें छोड़ आये वृद्धाश्रम, और दोबारा देखने भी नहीं गए कि वो लोग कैसे हैं। ज़िंदा भी हैं या मर गए । कैसे रहते हैं, क्या करते हैं, खाना खाते भी हैं या नहीं।


जो माँ बाप बचपन में आपके खाना न खाने पर आपके पीछे खाने की थाली लिए लिए लिए दौड़ते थे, कि बेटा, खाना खा लो, न पूरा खा पाओ तो थोड़ा ही खा लो, आज आप उनको ही भूल गए ।

दोस्तो ज़रा एक बार सोच कर देखिए, उन माँ बाप पर क्या गुज़रती होगी, जिसकी संतान उन्हें उन्ही के घर से निकालकर वृद्धाश्रम में छोड़ आये। 
शायद हम यह भूल चुके हैं, की माँ बाप कभी अपनी संतान का बुरा नहीं सोचते, कभी अपने बच्चे की तरक्की से नहीं जलते, वो तो बस आपके लिए चिंतित रहते हैं, और आपको सुखी देखना चाहते हैं, अगर वो आप पर हाथ भी उठाते हैं, तो वो भी आपकी भलाई के लिए । 

याद रखिये जो व्यवहार हम अपने माता पिता के साथ करेंगे, वही व्यवहार हमारी संतान भी हमारे साथ करेगी ।

अगर आज हम अपने माता पिता को वृद्धाश्रम भेज रहें हैं, तो कल हमारी संतान भी हमें वहीं भेज देगी। क्योंकि संतान अपने माता पिता से ही तो सर्वाधिक शिक्षित होती है।
इसलिए हमें अपनी संतान को अच्छे संस्कार देने चाहिए, और उन्हें बड़ो का आदर और सम्मान करना भी सीखाना चाहिए ।


वृद्धाश्रम बूढ़े माँ बाप के लिए न तो एक बेहतर स्थान है, और न ही हॉस्टल, बल्कि ये उनके लिए एक जेल हैं जहाँ वो बस सज़ा काटते हैं।

जिस दिन हम सभी बच्चे अपने माँ बाप का सम्मान करेंगे, उन्हें प्यार देंगे, अच्छे बुरे में उनकी सलाह लेंगे, उनकी सेवा करेंगे, उस दिन सारे वृद्धाश्रम अपने आप ही बंद हो जायेंगे ।

आइये आज हम सब मिलकर यह कसम खाए की माँ बाप को कभी दुःख नहीं देंगे और सदैव उनकी सेवा करेंगे।

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